नमस्कार।
प्रणाम।
शीर्षक: जन्नत।
जन्नत कहाँ हैं?
कामांधकारों के लिए,
नारी ही स्वर्ग।
तब तो स्वर्ग उसके लिए
यह धरती ही स्वर्ग है।
पियक्कडों के लिए
मधुशाला स्वर्ग।
पर्यटकों के लिए
प्राकृतिक दर्शन स्वर्ग।
कवियों के लिए उनकी
रचना स्वर्ग ।
चित्रकारों के लिए
चित्र खींचने में स्वर्ग।
हर एक यहीं स्वर्ग का
अनुभव करते हैं तो
और कहीं स्वर्ग नहीं।
जहन्नुम यहीं दीर्घ रोगी।
दीर्घ दरिद्री, लूले लंगड़े,अंधे,बहरे।
कइयों को देखते हैं यहाँ।
जन्नत अलग नहीं जहन्नुम अलग नहीं।
सब के सब यहीं।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।
प्रणाम।
शीर्षक: जन्नत।
जन्नत कहाँ हैं?
कामांधकारों के लिए,
नारी ही स्वर्ग।
तब तो स्वर्ग उसके लिए
यह धरती ही स्वर्ग है।
पियक्कडों के लिए
मधुशाला स्वर्ग।
पर्यटकों के लिए
प्राकृतिक दर्शन स्वर्ग।
कवियों के लिए उनकी
रचना स्वर्ग ।
चित्रकारों के लिए
चित्र खींचने में स्वर्ग।
हर एक यहीं स्वर्ग का
अनुभव करते हैं तो
और कहीं स्वर्ग नहीं।
जहन्नुम यहीं दीर्घ रोगी।
दीर्घ दरिद्री, लूले लंगड़े,अंधे,बहरे।
कइयों को देखते हैं यहाँ।
जन्नत अलग नहीं जहन्नुम अलग नहीं।
सब के सब यहीं।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।
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