Tuesday, October 30, 2018

दुविधा

सादर प्रणाम।

 सर्वेश्वर  की कृपा से सुखी हैं सब ।
लौकिकता में  सत्यवानों को
चाहते हैं  और उनको मौका भी देते हैं.
उनके भ्रष्टता में  साथ दें  और  मिल जायें।
वह मौका आर्थिक प्रलोभन ,
पद प्रलोभन ,
नाते -रिश्ते - इष्ट मित्रों के कल्याण
आधुनिक वैज्ञानिक सुविधाएँ ,
बाह्याडम्बर पूर्ण जीवन ,
अमीरी जीवन ,नौकर -चाकर
स्वार्थमय  भ्रष्टाचारी ,रिश्वत ,
झूठ ,अवैध काम  यही लौकिक बंधन।
इन से बचकर जीना पागलपन।
अतः   जितने भी आदर्श सत्यवादी
अकेले गरीबी में जीता है.
हरिश्चंद्र समान  जीवन में अनंत कष्ट
उठाना पड़ता है.
जितना मनुष्य भ्रष्टाचार का साथ देता है
उतनी प्रशंसा का पात्र बनता है.
न जाने मनुष्येत्तर शक्ति भी
सत्यवानों को नाना प्रकार के कष्ट देती है।
जिससे  सत्यके पालन में लोग  हिचकते हैं.
सत्यवान  अलग रह जाता है।
फिर भी सत्य की ,
धर्म की ,न्याय की प्रशंसा
सब करते हैं.
 सत्यवानों की तारीफ  जब तक जिन्दा रहते हैं ,
तब तक कोई करने तैयार नहीं।
मृत्यु के बाद ही तारीफ का पुल बांधते हैं.
शिला प्रतिष्ठा करते हैं.
यही सांसारिकता है.
ईश्वरीय शक्ति भी भ्रष्टाचारियों को
अंत तक साथ देकर
बदनाम की  मृत्यु देती है ,
जिसे पहचानना ,जानना ,समझना जागना
अधिकांश लौकिक पसंद लोगों से असंभव है.
उनको अकेले  बैठने पर 
तिल भर भी शान्ति नहीं ; संतोष नहीं ;
आत्मवेदना के आंसू बहते संसार छोड़ चलते है.
इसमें किसी को छूट   नहीं। अपवाद नहीं।
भले ही राम हो या कृष्ण।
आज मन में उठे विचार।

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