Saturday, October 13, 2018

व्यवहारिक सीख.

आज के विचार.
जिंदगी  जीकर
 मरने के लिए.
काल कब आएगा ,
पता नहीं.
असत्य बोलकर
कर्तव्य पथ से
 फिसलकर
नाम जोड,
 धन जोड
ठगकर -ठगाकर
पद पाकर
धन पाकर 
पैसे ही प्रधान मान
असत्याचरण अत्याचार  द्रोही के धन,
 मन, पद, उन्हें  कभी
 शान्ति संतोष, आनंद प्रद रहता नहीं।

अकेले में अपने की अशांति पर

अपने पर ही अपमानित
दुखित रहेगा ही।
यह अनुभव महसूस  करके
न सुधरेगा तो  आत्मदुखी हो
तडपकर मरेगा भले ही
धन हो, पद हो, प्रशंसकों की भीड़ हो.
देखो इंदिरा खान परिवार,
जया की मृत्यु,
करुणा की अतुल संपत्ति,
 लाल, माया  का करतूत.
न चैन, न सम्मान फिर भी चलते
सर तानकर ,
मन में हैं नरक वेदना.
 यही हालत सामान्य को भी.
नरक तो हर कोई
मरने के पहले  भूलोक में
 भोगकर ही मरता.
दशरथ, राम, कृष्ण,रावण,
हिरण्य कश्यप,
 सब की कहानी  की सीख है  यही..
(स्वयं चिंतक -स्वरचित -यस। अनंतकृष्णन। )

No comments:

Post a Comment