Sunday, October 14, 2018

आश्रम देगा -ॐ शांति।

कहते हैं आसानी से।
दो  पुस्तकाकार  तेरी रचनाओं  को.
कहते हैं नाम मिलेगा।
कोई नहीं कहता  दाम मिलेगा।
किसीने कहा ,हम प्रकाशित करेंगे
पत्रिका प्रकाशित करने के लिए दान दो।
उनका प्रयत्न स्तुत्य है,पर
हिंदी की किताबें कितनों तक पहुँचेगी।
कोई  राजा -महाराजा नहीं ,
हिंदी प्रेमियों की रचनाओं को
पुस्तकाकार देने  तैयार।
इसलिए नेहरू जैसे बड़े नेताओं ने
मातृभाषा छोड़ अंग्रेज़ी को अपनाया।
प्रधान बने तो अंग्रेज़ी को प्रधानता दी।
न मातृभाषा के माध्यम को प्रोत्साहित करने नौकरी।
ये अमीरों के पढ़ाने ,धनी ही पढ़ने
विदेशी भेजने स्नातक स्नातकोत्तर की तैयारी।
पैसे हैं तो पढ़ो ,उड़ो।
नहीं तो यही छोटी  मोटी नौकरी।
राजनैतिक बनो ,न चाहिए पढ़ाई -लिखाई।
न तो बनो आश्रम के साधू संत।
जिओ ,जीने दो।
आश्रम देगा -ॐ शांति।

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