Friday, October 12, 2018

जग देखा ,कोई जगाता नहीं।

ॐ हरिनारायण हरिनारायण  ॐ

आज मेरे मन में उठे विचार।
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स्वचिंतक - स्वरचयिता --यस। अनंतकृष्णन
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जग देखा ,कोई जागता नहीं ;
जग देखा ,कोई जगाता नहीं।
जगाने के प्रयत्न  में लगे लोग ,
जग की दृष्टि  में हैं पागल।

राम राज्य  की स्थापना ,
राग अलापते लोग।
राम राज्य में थे राक्षस।
राम राज्य में थे स्त्री मोही ;
राम राज्य में थे कामांधकारिणी।
राम राज्य में थे ऐसे धोबी ,
सीता का हँसी  उड़ाया;
राम के गुण  पर कलंक लगाया।
अग्निप्रवेश सीता पर आरोप।
जग को आदर्श दिखाने
भेज दिया वन वास ;
अश्वमेध यज्ञ  अपने अधिकार जमाने
अड़ोस -पड़ोस के राजाओं को
डराने -धमकाने।
अपने ही पुत्रों के साथ लड़ाई।
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राम राज्य में भी गुह ,शबरी जैसे
निम्न जाति  के लोग;
उनको गले लगाने ,
जूठा खाने  में दिखाई  अपनी महानता।
नतीजा रामायण काल के
मनुष्य -मनुष्य के
भेद मिटा नहीं ,
और बढ रहा है आज भी।

आरक्षण की  माँग  जाट कर रहे हैं ,
कई लोग अपने को निम्न जातियों की सूची में
जुड़ने ,जुड़ाने तैयार।गौरवान्वित ;

छात्र वृत्ति ,उद्योग ,पद ,स्कूल ,कालेज की भर्ती
अपने को हरिजन प्रमाण पत्र ,
एन केन प्रकारने  लेने तैयार।
और कोई हरिजन कहने पर
कारावास बिना पूछ-ताछ के।
खुद अपने को अनुसूचित कहकर
प्रमाणित करने में मानते सम्मान।
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जग देखा ,कोई जागता नहीं ,
जग देखा, कोई जगाता नहीं ;
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शासक का धन ज़माना,
अंतःपुर में दासियाँ ज़माना
कायरों को लूटकर धन जोड़ना
इसीको आदी  काल से कहते हैं वीरता;

राजा के सुख देख खुश रहना
राजा को देव तुल्य मानना ,
गुलाम -बेगार रहना ,
आज कल लोकतंत्र के नाम से भी चल रहा है ,
कोई जागता नहीं ,कोई जगाता नहीं।
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मजदूर  तो कई,
 समाज कल्याण के लिए ;
पर धनी वही मज़दूर
राम के युग से  आज तक;
आत्म-ह्त्या की सेना;
कहीं जीने की सेना नहीं।
हत्या करने की कूली  सेना;
उनको तो राजनैतिक समर्थन।
कितने निर्दयी लक्ष्मी के
गुलाम बन
धन जोड़ रहे हैं ;
कोई जागता नहीं ,कोई जगाता नहीं ;
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भ्रष्टाचारियों का आदर -सम्मान।
सद्यः फल के लिए धन का गुलाम।
धन दो ,दान दो , धन जोड़ो ,
मनमाना करो.
कितने भ्रष्टाचारियों के नाम प्रकट।
पूछ-ताछ के आयोग दिखावा।
इन आयोगों के खर्च ,
भ्रष्टाचारियों के लूटने से ज़्यादा।
पर परिणाम आज तक न मिला दंड.
लोग तो  भुलक्कड़। फिर वही कुर्सी पर।
नशीली चीजों की आमदनी से चलती सरकार।
कोई जागता नहीं ,कोई जगाता नहीं।

सच बोलने का साहस नहीं,क्यों?
उसके लिए एक कहानी की रचना की ;
सत्य हरिश्चंद्र ; उसीके आदर्श में  पले
मोहनदास ने इंदिरा फरोज़  खान को
इंदिरा गाँधी बनाकर पति के नाम जुड़ने के
भारतीय परम्पराको तोड़  डाला।
सोचो ,राजा का श्मशान की पहरेदारी करना
क्या किसी में सत्य बोलने का साहस।
नबी को पत्थर मारा,ईसा को शूली पर चढ़ाया।
क्या किसी में क्रांति का साहस।
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भगवान का नाम लो ,प्रायश्चित के नाम लूटो।
पापि यों को बचने दो ,यदि वह आमिर हो तो.
गरीब हो तो प्रायश्चित्त करने पैसे नहीं ,दंड भोगो।

कोई समझता नहीं ,कोई समझाता नहीं ,
कोई जगता नहीं ,कोई जगाता नहीं।
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फिर भी इन सब को जगाने कहीं न कहीं ,
कोई जिसे लोग पागल ,नालायक ,
बेचारा भला आदमी कह कर हँसी  उड़ा  रहे हैं
वही एक ऐसी छोटी -सी चिनगारी  छोड़ रहा हैं ,
वह भी चिंगारी शनैः  शनैः हर एक के
जीवन में जलकर कफन के रूप धारण कर रही हैं।
कोई समझता नहीं ,समझाता नहीं ,
जागता नहीं ,जगाता नहीं।

नश्वर जगत में मनमाना
रंग मंच के खेल
चल रहा है;
कोई जागता नहीं ,कोई जगाता नहीं ;
कोई समझता नहीं ,समझाता नहीं ;
अनश्वर नाटक धरती के मंच पर खेला जा रहा है.




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