Friday, October 12, 2018

जितेंद्र

यथार्थ जानने  से ही
सच्चे आदर्श पर पहुँच सकते हैं।
क्या यह भी संभव है ?
गाडी आयी ; टकराई ; मर गया ;
  हमें बहुत सोचना पड़ेगा।
गलती चालक  की है  या  पादचारी की है ?
चालक ने पीकर चलाई  कार।
परिणाम यह दुर्घटना।
पादचारी पियक्कड़ है ,इसलिए यह दुर्घटना।
कार में ब्रेक नहीं  इसलिए ;
असावधानी से तेज़ चलायी ,
असावधानी से पार कराया।
अब कितनी सीख मिली ,
एक दुर्घटना कितनी बातें सिखाती।
कार  चलाते पीना नहीं ,
पीकर कार चलाना नहीं ;
पीकर सड़क पर  चलना नहीं ;
सावधान से पैदल चलिए।
इतने आदर्श  का मूल है
दुर्घटना।
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 बलात्कार
बलात्कार हो गया ;
लड़की की हत्या।
वह अकेले रात को क्यों घर से बाहर आयी ?
वह अर्द्धनग्न पोशाक पहनकर क्यों आयी ?
उसने बलात्कार करने से क्यों न रोका?
एक  धर्माचार्य का कहना ,
लड़की को अनुनय विनय करना है
मुझे बहन समझो।
कुछ लोग अपने दोस्तों से
बोलते हैं  मेरे दादा-नाना सम लिंगी।
सोते समय जांघ से रगड़कर शुक्ल गिराते।
मेरी चाची ने मुझसे बलात्कार किया ;
कितनी बातें ,शर्म की बातें
जिन्हें अभिव्यक्ति करने संकोच कर
लज्जावश प्रकट नहीं करते
अब अभिव्यक्ति कर रहे हैं।
अध्यापक -अध्यापिकाकी प्रेम लीला पाठशाला में ;
अध्यापिका  और छात्र की कामलीला   ;
अब समाज में सहज ;
कारण  तो दूर संचार साधन।
निर्लज्जता।
शिक्षा में अनुष्ठान ,संयम की शिक्षा की कमी.
हमारे सिद्ध ब्रह्मचर्य पर ज़ोर  देते।
अंग्रेज़ी  और  उनके पूर्व शासक
पतिव्रता ,पंचेन्द्रिय नियंत्रण नहीं जानते;
कामांधकार को भूख कहते;
पर भारतीय परंपरा आध्यात्मिक चिंतन।
संयम पर    ,ब्रह्मचर्य पर जोर देकर
कामावेश को स्वास्थ्य बिगड़ने का भय दिखाते ;
आज कल संयम ,आत्म नियंत्रण कोई नहीं बोलते।
यही युवकों की दुर्बलता ,तलाक और आत्महत्या के मूल।


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