Saturday, January 5, 2019

अष्ट सिद्धि नव निधि की ज़रूरत.(मु)

नमस्ते जी.
आज के चिंतन.
जग देखा,
जग का व्यवहार देखा,
सत्य को दबकर ही रहना है,
नहीं तो दबाकर ही जीना है.
जगत मिथ्या है,
जग सच्चा नही.
सत्य का बाह्याधार,
आंतरिक जीत
सत्य से मिलना
अति कठिन.
सरसरी नज़र से रामायण काल से
आधुनिक काल तक अध्ययन  में
धर्म, सत्य स्थिर शांति.
बाकी सब अस्थायी सुख.
सद्य फल  का प्राप्ति में
मानसिक शांति, व्यक्तिगत  शांति
खो बैठता हैं मनुष्य समाज.
 धन के सामने ही सब झुकते.
पद के सामने ही झुकते
पद-और धन का संबंध
 धर्म को जाते पर
ईश्वरीय  शक्ति तमाशा देखती रहती.
सत्य धर्म ईमानदारी  की रक्षा
अपनी प्राकृतिक  देन से करती रहती.
सत्य धर्म को  रो रोकर
पनपने सादर जीने त्यागना का उपदेश  देती.
सत्य धर्म न्याय के बोली में आदर,
शक्ति में विपरीत.
बल को शक्ति को अष्ट सिद्धि  नव निधि की ज़रूरत.
न तोकोई महत्व नहीं जग में.

No comments:

Post a Comment