அவள் சொன்னாள்.
उसने कहा था।
राम समान मर्यादा पुरुषोत्तम था करुप्पन । वह अपने नाम तमिल भाषा में होने से अपने को निम्न मानकर दुखी होता था।
उसका दोस्त कृष्ण था। कृष्ण का अर्थ काला था। तमिल में एक गाना है ,कौए के काले पंख में तेरा काला रूप दिखता है नंदलाला।
पर श्याम नाम आदरणीय है।
करुप्पन नाम शुद्ध तमिल होने पर भी सूचित अनुसूचित जातियों का भाव आ जाता है।
कुछ तमिल के अति प्रेमी
तमिल का नाम रखते हैं, फिर भी
तामरै जिसको कमल,सरोजा,पद्मा,नीरजा, पंकजा जलजा कहते हैं, वही नाम सुनने में आता है,तामरै तमिल शब्द कम।
करुप्पन बहुत चिंतित था।
प्रेम जो है मनुष्य में अनजान में हो जाता है। नौकरी के साक्षात्कार के समय, दूकान में, यात्रा में।करुप्पन को भी एक प्रेस मिटा मिल गयी। उसका नाम तो पुष्पलता। तमिल के कुछ लोग पूंकोडि नाम रखते हैं।
आजकल तो अंग्रेज़ी का माहौल है न? सब पुष्पलता को पुष पुष कहते हैं। उसकी सहेलियाँ पुष पुष पुकारते थे। पुष्पलता को अपना नाम पसंद नहीं था। करुप्पन को उसके नाम से घुटन था व पुष्पलता को अपने नाम से।
इत्तिफाक से दोनों एक कंपनी के साक्षात्कार के समय मिले।
प्रेम कैसे ? कब? किससे होगा पता नहीं। दो ही मिनट की मुलाकात में दोनों में स्वर्ग पाताल की बातें हुई। व्यक्तिगत बातें भी।
तब पता लग चला कि करुप्पन को अपने नाम से नफ़रत है।
पुष्पलता को अपने नाम से।
पुष्पलता न जाने करुप्पन नाम से प्रभावित थी।
तभी दोनों में भाषा की चर्चा हुई। तब तमिल के प्रति की क्रांति की बातें हुई।
तमिल के बड़े बड़े भक्तों ने अपने संस्कृत नाम को शुद्ध तमिल में बदल दिया।
ये अपने को पच्चैत्तमिऴन कहते हैं। अर्थात हरा तमिऴन। Ever green तमिऴ भाषी।
पुष्पलता ने कहा --"करुप्पन, तेरा नाम संस्कृत में कृष्णन, श्याम है। पर मुझे तो करुप्पन ही पसंद है।
तब मजाक में करुप्पन ने कहा--करुप्पाई। करुप्पाई।
न जाने पुष्पलता को यह करुप्पाई शब्द अति पसंद आ गयी। भगवान विष्णु के मंदिर के आगे पतिनेट्टाम् करुप्पाई मंदिर प्रसिद्ध है।
पुष्पलता ने कहा --हमआरआ कुल देवता पतिनेट्टाम् पड़ा करुप्पाई है।
आहा! मेरे घरवाले करुप्पणसामी को कुल देवता कहते हैं।
हर साल हम अपने कुल देवता की आराधना करते हैं।
हमारी शादी हुई तो पुष!
तुरंत पुष्पलता ने कहा --पउष, पुष मत कहो। मुझे पुष करोगे । नहीं, करुप्पाई पुकारो। करुप्पाई में आत्मीयता है।
तब दोनों एक साथ कहने लगे --"करुप्पन, करुप्पाई।
यह नयी क्रांति नहीं,नाम को तमिल में बदलना।
दोनों अपने अपने घर चले।
पुष्पलता अकेली बैठे अपने प्रेमी की आवाज़ की याद आयी ऐसा लगा --करुप्पन पुकार रहा है --"करुप्पाई करुप्पाई।".
यहाँ करुप्पन अकेले आनंद विभोर हो रहा था ,पुष्पलता को करुप्पन पसंद आ गया और करुप्पाई भी।
यह वह दोनों सोच रहे थे -"उसने कहा था।
स्वरचित कहानी।
स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक
एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई।
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