Sunday, July 16, 2023

हिंदी खर्च बेकार

 नमस्ते नमस्ते वणक्कम।

मानव दुखी क्यों?

 दुखी ?!!!

ईश्वर की सहज देन से संतुष्ट नहीं।

 लौकिक सुख भोगने धन प्रधान।

 धनियों में बड़ा धनी,

  अति आनंद से जी रहा है।

 सांसारिक सभी सुखों  का भागीदार है।

 ऐसी माया मानव मन में छा जाता है।

तुरत पैसा मिलना है।

जिस स्थान से जुड़े हैं

 उससे नाम लेना है।

सद्यःफल शाश्वत फल नहीं है।

आजकल सम्मान ,माला,पदक, प्रमाण पत्र का  लोभ दिखाकर

 कमाने और अपनों को महान

 दिखाने के लिए पंजीकरण शुल्क।

कविता कहानी,शोध ग्रंथ लिखो,

कवि सम्मेलन में भाग लो।

 पंजीकरण शुल्क,सदस्यता शुल्क भरो।

ठीक है अर्थ नहीं तो जीवन अनर्थ।

 ऐसे देश भक्त,भाषा भक्त,

 ऐसी संस्धशथाएँ क्यों न सोचती,

 करोड़ों  करोड़ चुनाव में 

 खर्च करनेवाले राजनैतिक दल,

 चुनाव में जीतने रिश्वत मतदाताओं को देनेवाले राजनैतिक दल,

क्यों भारतीय भाषाओं की प्रगति के लिए एक पैसा भी खर्च नहीं करते।

 विश्वविद्यालयों की बढ़ती देखते हैं, परिणाम  भारतीय भाषाएंँ

 जीविकोपार्जन के लिए लायक नहीं।

आज़ादी के पच्हत्तर साल में

 घर घर, गली गली गाँव गाँव

 अंग्रेज़ी माध्यम के विकास।

कारण धन लाभ।

साक्स, शू,टै व्यापार जो

हमारे भारत की जलवायु के लिए

 अनुचित है, स्वास्थ्य बिगाड़ने का कारण।

 शिथिल वस्त्र नहीं, कारण

 सद्यःफल देनेवाला कमिशन।

 पैसे प्रधान है तो अनुशासन प्रधान है कि नहीं।

  दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की छात्र संख्या बढ़ती हैं तो

 अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों के कारण।

 आजकल सरकार मधुशालाएँ ही

 आमदनी का प्रमुख संसाधन मानकर खोल रही है।

 वास्तव में यह बड़ा अन्याय है।

 सरकार की आमदनी  कइयों के

 जीवन में गरीबी आती है तो

वह आमदनी बाढ़, सुनामी, अकाल, संक्रामक रोग, विष शराब की मृत्यु ऐसा ही होता है।  

   पानी के पैसे पानी में,दूध के पैसे ही सही उपयोग में।

 हिंदी के विकास के लिए 

 करोड़ों के खर्च।

 पर हिंदी विरोध के कारण जानकर दूर करने,

 हिंदी के प्रति प्रेम बढ़ाने के बदले

 अल्पसंख्या के लिए खर्च कर रही है।

 परिणाम दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की प्रमुख आमदनी 

 अंग्रेज़ी माध्यम का स्कूल।

  मातृभाषा माध्यम बंद।

 निजी सीबीएस सी स्कूल में

 अध्यापक बेगार।

सरकारी स्कूलों में अध्यापक की नियुक्ति।

 पर मनमाना छुट्टी लेने अध्यापक को अधिकार।

   हिंदी के विकास के लिए खर्च बेकार।

 क्यों तमिलनाडु के भाषा विरोध

 कर्नाटक  में भी गूंजने लगा है।

 केंद्रीय हिंदी निदेशालय है,

वहाँ विश्वविद्यालय के डाक्ट्रेट को ही करोड़ों खर्च करने की योजना है।

 आम जनता में लाखों के हिंदी प्रेमी उत्पन्न करनेवाले 

 सभा की उपाधि धारों की आर्थिक दशा की प्रगति करने ,

 केवल हिंदी के आधार पर जीने देने कोई योजना नहीं। 

 कारण तमिलनाडु की जनता हिंदी विरोध करती है।

 जनता नहीं, प्रांतीय दल।

 सांसद में कांग्रेस के समर्थन के लिए प्रांतीय दलों के विकास में साथ देना। 

राष्ट्रीय शिक्षा का विरोध, हिंदी का विरोध।

  अब थोड़े दिनों में तमिल भाषा के प्रति नफ़रत बढ़ेगी। केवल अंग्रेज़ी। न तो हिंदी ही आएगी।

 हिंदीवाले दक्षिण के हिंदी को नहीं चाहते।

 विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषियों की नियुक्ति  होती हैं।

अधिकांश हिंदी प्राध्यापकों की मातृभाषा तमिल नहीं है।

 सभा के उच्च शिक्षा विभाग में भी यही हालत है।

  जब अंग्रेज़ी भाषा के लिए

 भारतीयों में योग्यता है तब भारतीयों में हिंदी भाषा में योग्यता क्यों नहीं।

 हमारे देश की राजनीति संस्कृत को दूर रखी। अब भारतीय भाषाओं के विकास में ध्यान न देती।

 केवल तमिल माध्यम ही तमिलनाडु सरकार की नियुक्ति के लिए काफी है, ऐसा प्रस्ताव  लेना चाहिए। ऐसे हर एक प्रांत में।

 वैसे ही केंद्र सरकार  केवल हिंदी में  और भारतीय भाषाओं में प्रतियोगिता परीक्षाएं चलानी चाहिए।

 अंग्रेज़ी माध्यम चलाने की अनुमति रद्द कर देनी चाहिए।

  नहीं तो हिंदी ही के विकास के करोड़ों रुपयों का खर्च हिंदी विरोध को बढ़ाएगा ही।

1937ई. से हिंदी विरोध तमिलनाडु में।

 आज़ादी के पच्हत्तर साल के बाद भी बढ़ रहा है,यही खेद की बात है।


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