हिंदी में दिव्य शक्ति,
भारतेंदु काल की खड़ी बोली।
आज बन गयी हिंदी।
संस्कृत की बेटी,
अब न रही तुलसी की भाषा।
न रही सूर की,मीरा की व्रज माधुरी।
दिल्ली,मेरठ,आख्या की डेढ़ लाख की बोली,
उसकी उम्र केवल 135.
बन गयी विश्व की दूसरी भाषा।।
तमिल कवि सम्राट कण्णदआसन ने
अपनी भारतीय भाषाओं की प्रशंसा में हिंदी के बारे में लिखा है--
हिंदी मोर नाचो,नाचो।
घमंड रहित नाचो।
भारत देश अपनाएगी।
कवि की बातें सत्य होगी ही।।
जनता में जागृति आ गई।
केंद्र सरकार उन्हीं है को प्राथमिकता देनी चाहिए जिसमें
सामान्य योग्यता के साथ हिंदी का प्रमाण पत्र हो।
जागना जगाना जगवाना हमारा काम है।
आज़ादी है के बाद ही अंग्रेज़ी मोह बढ़ रहा है।
यही चिंताजनक है।
जनता में जागृति आ गई।
केंद्र सरकार उन्हीं है को प्राथमिकता देनी चाहिए जिसमें
सामान्य योग्यता के साथ हिंदी का प्रमाण पत्र हो।
जागना जगाना जगवाना हमारा काम है।
आज़ादी है के बाद ही अंग्रेज़ी मोह बढ़ रहा है।
यही चिंताजनक है।
बढ़िया है।पर हिंदी जीविकोपार्जन भाषा तमिलनाडु में नहीं है।
भारत भर में अंग्रेज़ी का ही महत्व है। ऐ.टि। क्षेत्र में हिंदी प्रधान नहीं है। निजी संस्थाओं में अंग्रेज़ी का ही महत्व है। अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल में ही हिंदी है। वेतन घर का किराया भी नहीं दे सकते।
तमिल की भी ऐसी ही गति हैं ,2000से ज्यादा तमिल माध्यम स्कूल बंद।
शिक्षा का पहला उद्देश्य जीविकोपार्जन।
इसीलिए अंग्रेज़ी सीखने लगे।
आजकल ब्राह्मण भी संस्कृत नहीं सीखते। अंग्रेज़ों के शासन काल में ही नौकरी के लिए लोग संस्कृत छोड़कर वकील क्लर्क बने। यह परिस्थिति आजतक चालू हैं। बीस अन्य विषयों के अंग्रेज़ी पारंगत काम करते हैं।
एक दो हिंदी अध्यापक।
हिंदी का विरोध अब कर्नाटक में भी शुरू हो गया है।
उच्च शिक्षा उच्च क्षय नौकरी जब तक भारतीय भाषाओं को नहीं मिलेगी, हिंदी की प्रगति नाम मात्र के लिए।
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