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Thursday, December 27, 2018

आंडाल कृत तिरुप्पावै... 12

आज मार्गशीर्ष 
महीने का
12वाँ दिन.
सबेरे ओस कण  गिर रहे हैं!
एक सखी सो  रही है.
उसके घर की गाएँ
भूखे बछडों की आवाजें सुनकर
अपने आप स्तन से दूध निकाल रही है.
सखी को करके सामने दूध से भीगी कीचड.
सखियाँ  उसको भी नहाकर पूजा करने ले
जाने की चिंता में हैं.  अतः उसके जगाने गाती हैं.

तिरुप्पावै.. 12
आंडाल दक्षिण  की मीरा कृत.


भूख से पीडित अपने   बछडो के

शोर से मज़बूर  गायों के स्तन से दूध
अपने आप  निकला,
दूध के निकलने से वहाँ की भूमि
कीचड़ से भर गई. 
अतः गेपिकाएँ जरा
दूर से खडे होकर 
अपनी  सोती हुई सखी को
जगाने ज़ोर से गाने लगी.
हे सखी! उठो!
 हम सिर पर गिरनेवाले ओस कणों पर बिना ध्यान दिये तुम्हारे  घर के द्वार पर खडी हैं.

सीता के अपहरण से दुखित
 क्रोधित रामवतार में आए

नारायण  के यशोगान  करने निकली हैं.
तुम तो निश्चिंत सो रही हो.
सब घरों  की अहीर गोपिकाएँ
  जाग चुकी है.
 केवल तुम सो रही हो. उठो.
सब .मिलकर भगवान के कीर्तन करेंगी.
अनुवाद. मतिनंत.

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