Search This Blog

Friday, December 21, 2018

आंडाल कृत तिरुप्पावै. 7

तडके न उठी
 सखी को जगाती हुई सखी गाती है...
 बुद्धि हीन  सखी!
क्या  गौरैया का चहचहाना नहीं सुना?
 उन चिडियों की बोली न   सुनी है क्या?
सुगंधित केशवाली अहीर औरतों के गले के मंगल सूत्र,
उनके दही के मथने से
आवाज़ उठाती हैं.
 वह ध्वनी भी नहीं कानों पर पड़ी है?
तुमने कहा कि  तुम्हारे  नेतृत्व  में आज लेे चलोगी.
हम श्री  नारायण  ,केशव के यशोगान  कर रही हैं. 
वह भी तुम्हारे कानों पर नहीं पड रही हैं.
 तुम्हारे न जागने का रहस्य क्या है?
. कांतिमय  चेहरेवाली सखी!
तेरा दरवाजा खोलो, जागो.,

No comments:

Post a Comment