Saturday, December 29, 2018

आण्डाल रचित तिरुप्पावै --१५

  सबको  नमस्कार

आण्डाळ रचित तिरुप्पावै -१५,

मार्गशीर्ष महीने की सर्दी में तड़के उठकर नहाना ,
भगवान का यशोगान करना स्वाथ्य और ज्ञानार्जन का मुख्य नियम है.

आज पन्द्रहवाँ दिन.
तिरुप्पावै --१५.

सो रही सखी को जगाने आयी सखियाँ ,
आज कटु शब्दों से गाने लगी ------
उठो ! आज बहुत देर सो रही हो ,यह सही नहीं है.
सखी कहती है --अभी आयी .
अन्य सखियाँ चिढ चिढ़ाती है --
बिस्तर से उठती हुयी सखी कहती हैं कि
आप तो वाक्पटु रहिये ; मुझे ठगी ही मान लीजिये।
सखियों ने कहा--सब के सब आ गयीं ;तुम ही सो रही हो ;
ऐसी निद्र्रा क्यों ?हमें पहले ही जागकर तुम्हारी प्रतीक्षा में
खड़ी हैं ;तुम क्या बड़ी हो हम से ?ऐसी क्या विशेषता है तुममें ?
सखी ने अंदर से पूछा -क्या मैं ही सो रही हूँ ?
क्या सब के सब आ गयी हैं ?
सखियों ने जोर से कहा -उठो ,बाहर आओ ;
सब के सब आ गयीं ;
गिनकर देखो।
कुवलय पीठ हाथी के वधिक ,
दुष्ट -संहारक माया कृष्ण की प्रार्थना करने
यशो गान करने जल्दी आओ।

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