Saturday, December 22, 2018

आंडाल तिरुप्पावै 8


आंडाल तिरुप्पावै  8
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सब को मेरा प्रणाम.
आज मार्गशीर्ष  महीने का
आठवाँ  दिन है

आंडाल कृत  तिरुप्पावै  के तीस पद्यों में
यह आठवाँ  हैं.

हमारे पूर्वजों ने भक्ति के द्वारा
हमारी आलसी दूर करने की पद्धति  अपनायी है

हर बात में ईश्वर  के भय मिलाकर
अनुशासन बद्ध जीवन जीने का मार्ग दिखाया है.
विदेशी आक्रमण और शासन हमारे चरित्र को
बिगाड चुका है.
आजादी के बाद भी  नेहरू , करमचंद गाँधी जैसे
पाश्चात्य  रंग में रंगे नेता
धर्म निरपेक्षता और अल्प संख्या
अधिकार द्वारा
 भारतीय जितेंद्रिय  सिद्धांतों को
अवहेलना कर  अनुशासन और संयम रहित
समाज को बढावा दे चुके हैं.
आइये.

आंडाल तिरुप्पावै  पर विचार  करेंगे.
मार्गशीर्ष  महीना कठोर सर्दी का महीना है.
सबको तडके उठना मुश्किल है.
ऐसी हालत में चुस्त बनाने
 व्रत रखने का संदेश है.
सुप्तावस्था  की सखी को जाती हुई
लखिया गाती हैं.

पूर्व दिशा में सूर्योदय के कारण
उज्ज्वल  हो रहा है.
भैंसें  दूध दुहनेके पहले
हरी घास चरने लगी हैं,
ये सब बिना देखे सोे रही हो.
हम कन्या व्रत के लिए
निकल रही हैं,
हे सखी!  तुमको जगाने  रुक गयी है.
जागो,उठो,नहाकर भगवान  का यशोगान करेंगी.
पहले सात पद्यों का प्रकाशित किया है.
आज आठवाँ.
देर से सोेनेवाली सखी को अन्य सखियाँजगा रही है.

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