Wednesday, November 21, 2018

मानव जगत (मु )

देव जगत की कल्पना में ,
दानव जगत की क्रूरता में
विधि की विडम्बना में
विधिवत दिव्य तत्व को न जान्ने से
मानव जगत सुख दुःख के चक्रमें।
हर कोई न बन सकता आविष्कारक।
आविष्कारक एक उपभोगता जग -मानव।
खोज करता एक ,आनन्दानुभव जग.
शासक एक ,सुख -दुःख भोगता राष्ट्र।
आसुरी शक्ति  के सामने ,
दिव्य शक्ति का घुटने टेकना,
एक दिव्य शक्ति का उदय ,
आसुरी शक्ति का अंत
मजहब की दुनिया में
राम कहानी ही अधिक।
मुहम्मद ने पत्थरों का मार खाया।
ईसा ने शूली का कष्ट भोगा।
राम आजीवन मन में रोता  रहा.
कृष्ण को तो माँ  का गोद  न  मिला।
हरिश्चंद्र की कहानी हरिश्चंद्र सम हरिश्चंद्र।
सांसद -विधायक कठपुतलियाँ
  अपने नेता  के इशारे की।
मानव जगत अति स्वार्थ ,
मानव जगत अति परार्थ।
मानव जगत अति भोगी।
मानव जगत अति त्यागी।
स्वार्थों की सूची स्मरण में नहीं ,
वह तो अति लम्बी।
भोगियों की सूचियाँ अगणित।
त्यागियों की सूची सगणित।
मानव जग सोचो ,जानो ,खोज करो
अति गहरा ,अति सूक्ष्म ,अति निराला।
अतः मानवों के गन की तुलना पशु -वनस्पति जगत से.
जड़-सा खड़ा,लकड़ी सा लेटा ,
बगुला भगत ,सियार चालाकी ,
सिंह चाल ,बाघ सा दबना ,
हिरन नयन ,काल चरण ,गुलाबी गाल.
मानव जगत मानव जगत नहीं ,
पशु गुणों का ,वनस्पति गुणों का मिश्रण।




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