Thursday, November 8, 2018

लक्ष्मी तू हार गयी (मु )

लक्ष्मी के नाम पत्र ,
देवी! चरण वंदन।
तेरी महिमा जन्म विदित है ,
सर्वत्र तेरे गुणगान।
चुनाव में जीतना ,
स्नातक -स्नातकोत्तर की उपाधियाँ पाना
व्यापार करना ,
रिश्ते-नाते दोस्तों के  भीड़ में मज़ा लेना ,
कारखाने ,माल के मालिक बनना
चित्र पट  के निर्माता - निदेशक बनना ,
चित्रपट -घर बनाना ,
संगणिक -अंतरजाल -यात्रा -सपर्क सब के मूल में
लक्ष्मी प्रधान।
जितना भी बल तुझमें हैं ,पर
तेरे अवहेलना करने का एक पल
हर एक के जीवन में अवश्य।
पहाड़ को चूर चूर भले करो।
धर्म -अधर्म कीजीत -हार तुम पर निर्भर।
अपार शक्ति तुझ में ,
तेरे वश में सब कुछ ,सभी प्रकार का आनंद सोच
न्याय -अन्याय तेरे अधीन।
भगवान की महिमा भी हीरे के मुकुट ,
सोने के कवच में.
इतना होने  पर भी न जाने
तुझ से दूर न करनेवाले
कई विषय है संसार  में.
करोड़पति के यहाँ असाध्य रोगी ,
डाक्टर  के यहाँ  पागल बच्चे,
करोड़पति के पुत्र का अकाल मृत्यु।
करोड़ों के खर्च कर चुनाव में हार.
गधे का स्वर संगीत प्रिय को।
जन्म से अंधे, निस्संतान दम्पति
कई विषय ऐसे संसार में
तुम्हारे अधीन  नहीं।
रेगिस्तान को उपजाऊँ  भूमि न बना सकती तू.
दक्षिण ध्रुव को गरम प्रदेश नहीं बना सकती तू.
जन्म से मंद बुद्धि को प्रतिभाशाली न बना सकती तू.
फिर   भी  यह पागल दुनिया ,
तेरे पीछे पागल।
हँसी  आती है ,मुझे कई करोड़पति की आत्महत्या देख.
लक्ष्मी तू हार गयी.



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