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Tuesday, November 4, 2014

आज कल भारत के हिन्दू लोगों में यह सवाल और व्यथा है कि हिन्दू जनता अपनी धार्मिक एकता केलिये या अपने धर्म के अपमान के वक्त एक ही आवाज क्यों नहीं उठाते. मूर्ति पूजा के पक्षवादी हिन्दू लोग गणेश चतुर्थी की पूजा और ईश्वरीय आह्वान और पूजा के बाद उस सुन्दर मनमोहक कठोर मेहनत और पांच हज़ार रुपये के खर्च में बनाई मूर्ति को समुद या नदी में फेंककर खण्ड -खण्ड करने केलिये फेंकते हैन.वह मनमोहक रूप समुद्र की ल्हरों की चोट खाकर किनारे पर लगती है्. सिर् कॅया टुकड़ा , सूंड़, हाथ पेर अलग- अलग. क्या ऐसी कोई संस्कार वेद या उपनिषद में हैं? यह तो स्वतंत्रता संग्राममें अंग्रेज़ों की नज़र बचाने शहीद बॉल गंगाधर तिलक ने जुलूस निकाला था. इसका अंधानुकरण आजादी के बाद भी हो रहाहै. चेन्नई में मात्र 6,500 मूर्तियाँ समुद्र में फेंकी गयीं हैं. उनका मूल्य एक करोड़ से ज्यादा. अलावा इसके पुलिस की सुरक्षा, भय-आतंक,मार-पीट अशान्ति अलग. कैसे एक स्वर हिन्दू उठाएंगे.?

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