ईश्वर के नाम तोड़ फ़ोड़ करनेवाले इन्सान नहीं,
इंसान के नाम के शैतान है वह.
मनुष्यता नहीं हैं इसलिए मारता है मनुष्य को निर्दयता से मज़हब के नाम से।
बीस हज़ार तीस हज़ार की मूर्ति बनाकर समुद्र में विसर्जन करता हैं;
ज़रा सोचो ; मार् कर ईश्वर को अगले साल के लिए बुलाता है;
कितने भूखे नंगे अनाथ लोग है संसार में ,
उनकी चिंता तो हमें नहीं,
एकता दिखाते हैं करोड़ों रुपयों के बुत बनाकर फेंकने में ;
दया नहीं ,ममता नहीं ,मायाभरी भक्ति ,इसमें मेरा तनिक भी मन नहीं लगता।
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