Thursday, September 24, 2015

देवी भक्त कवि अभिरामि भट्टर



(तमिल)  देवी भक्त कवि अभिरामि  भट्टर 
तमिल भाषा में भक्त कवियों की कमी नहीं है। 

वर  कवियों में    सुब्रह्मणीय भारती को  मानते है।  

भक्त कवियों ने खुद ईश्वर के दर्शन किये थे। 

जैसे कालीदास संस्कृत में काली देवी  की कृपा से संस्कृत  के  कवि बने। 

वैसे ही  अरुणगिरी नाथर ,अप्पर ,सुन्दरर ,तिरुनावुक्करसर ,  आंडाल आदि भक्ति में ही तल्लीन हुए  और 
ईश्वर की स्तुति में अमर ग्रंथों  की रचना की। 

अभिरामि  भट्टर  ऐसे ही एक देवी भक्त थे; 
वे हमेशा  देवी मंदिर  में आँखें बंदकर ध्यान मग्न बैठते थे। 

वे पागल थे देवी की भक्ति में। 
एक दिन मंदिर में देवी के सामने ध्यान में विलीन सुधबुध खोकर बैठ रहे थे.

तंजाऊर  के राजा   सरबोजी देवी दर्शन के लिए आये। 
बहत्तर तो  ध्यान मग्न थे; राजा  की ओर  उनका ध्यान  ही  नहीं गया. 

वह अमावश्य का दिन था ; अंधकार था चारों ओर। 
राजा के पूछने पर बहत्तर ने पूर्णिमा तिथि बताया. 

राजा परेशान हो गए ; और राजमहल चले गए। 
राजा के जाने के बाद भट्टर  को अपनी भूल मालूम हो गयी। 
उन्होंने देवी से कहा ,याद में मैंने पूर्णिमा बता दिया। 
तेरे भक्त की बात से तेरा नाम बदनाम न होना है.

उन्होंने आग का एक अग्नि कुण्ड बनाया। 
उस पर सौ रस्सियों की हाँडी  बनायी ;
उसपर बैठकर देवी पर कीर्तन गाने लगे। 
एक गाना गाते और एक रस्सी काटते। 
इस प्रकार  अठहत्तर  रस्सी काटी ;
राजा भी वहां खबर सुनकर आ गए;
वातावरण तनाव पूर्ण था;
सौ  पूर्ण हूँ गए तो कवि  भक्त भट्टर  अग्निकुंड में गिरकर प्राण दे देते. 

देवी उनके अन्तादि से प्रसन्न हो गयी ;
सीधे उनके सामने प्रकट हो गयी ;
अपने कर्णाभूषण तोड़ फेंकी तो आकाश में चंद्रोदय हो गया। 
चारों ओर  रोशनी फैली ;
भट्टर  की आँखों से  आनन्दाश्रु निकले ;
देवी की कृपा से सौ अन्तादि  की रचना की ;
राजा और अन्य लोगों ने भक्त भट्टर  की प्रशंसा की. 
 एक गीत के अंतिम अक्षर से दूर गीत का आरम्भ है ;
इसीलिये यह  अभिरामि  अन्तादि के से प्रसिद्ध  हो गये. 





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