हम बहुत सोचते है।
ईश्वर के बारे में।
क्या हमने ईश्वर को सही ढंग से
जाना पहचाना।
पहचानने की सूक्ष्मता सचमुच हममें है
है तो पूजा अर्चना के बाह्याडंबर को हम
बिलकुल तोड देंगे।
पर दिन ब दिन बाह्याडंबर बढ रहा है।
मानव मन में यह बात बस गयी कि
बिना धन के ईश्वर संतुष्ट न होंगे।
ऐसे विचार बढते रहेंगे तो
आध्यात्मिकता केवल धनियों की हो जाएगी जैसै आदी काल से चालू है। भक्ति एक खास व्यक्ति या खास जाति की ही हो जाएगी।
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