संचालक सदस्य संयोजक चाहक रसिक पाठक सबको तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक यस अनंतकृष्णन का प्रणाम।
शीर्षक: घटना जिसने सोच बदल दी।
13-1-2020
1965से 1967 की बात।
दसवीं बढ रहा था।
तमिलनाडु भर में रेल बस
जला रहे थे ।
युवक अपने को
जला रहे थे।
लाठी चार्ज ।
कारण राष्ट्र भाषा , संस्कृत के विरुद्ध
आंदोलन।
तमाशा देखिए नेता का नाम करुणानिधि।
दल के चिन्ह उदय सूर्य।
पर विरोध हिंदी और संस्कृत।
केवल छात्र मात्र
मार खा रहे थे।
मैं ने भी भाग लिया।
हिंदी पुस्तकें जलाई।
हिंदी मुरादाबाद का नारा लगाया।
भाग्य का खेल देखिए।
हिरण्यकशिपु-प्रह्लाद जैसे।
माँ हिंदी अध्यापिका।
मैं हिंदी विरोधी।
मैं तमिल कवि कण्णदास का भक्त।
उनकी एक कविता एक।
हिंदी मोर नाचो, नाचो।
शनैः शनैः नाचो।नाचो।
मातृभूमि अपनाएगी।
सोचा छात्र मार खा रहे हैं।
करुणानिधि छिप छिप कर।
प्रार्थना भी कर रहे हैं।
24 प्रांत हिंदी के पक्ष में।
एक प्रांत तमिलनाडु हिंदी के विरोध।
सोच बदली।
माता की भाषा
हिंदी सीखी।
भाग्य का खेल।
हिंदी विरोध क्षेत्र में
स्नाकोत्तर हिंदी अध्यापक।
तमिल कवि कण्णदास नास्तिक।
वे नेता बदले, आस्तिक बने।
सोच बदली सिद्धार्थ बने बुद्ध।
अशोक सोच बदले निंदनीय सम्राट बने।
जनता सोच बदल मोदीजी को अपनाया।
सोचो-विचारो।सोच बदलो।
यह मरे अनुभव की बात।
यह मेरी मौलिक रचना।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन का प्रणाम।
शीर्षक: घटना जिसने सोच बदल दी।
13-1-2020
1965से 1967 की बात।
दसवीं बढ रहा था।
तमिलनाडु भर में रेल बस
जला रहे थे ।
युवक अपने को
जला रहे थे।
लाठी चार्ज ।
कारण राष्ट्र भाषा , संस्कृत के विरुद्ध
आंदोलन।
तमाशा देखिए नेता का नाम करुणानिधि।
दल के चिन्ह उदय सूर्य।
पर विरोध हिंदी और संस्कृत।
केवल छात्र मात्र
मार खा रहे थे।
मैं ने भी भाग लिया।
हिंदी पुस्तकें जलाई।
हिंदी मुरादाबाद का नारा लगाया।
भाग्य का खेल देखिए।
हिरण्यकशिपु-प्रह्लाद जैसे।
माँ हिंदी अध्यापिका।
मैं हिंदी विरोधी।
मैं तमिल कवि कण्णदास का भक्त।
उनकी एक कविता एक।
हिंदी मोर नाचो, नाचो।
शनैः शनैः नाचो।नाचो।
मातृभूमि अपनाएगी।
सोचा छात्र मार खा रहे हैं।
करुणानिधि छिप छिप कर।
प्रार्थना भी कर रहे हैं।
24 प्रांत हिंदी के पक्ष में।
एक प्रांत तमिलनाडु हिंदी के विरोध।
सोच बदली।
माता की भाषा
हिंदी सीखी।
भाग्य का खेल।
हिंदी विरोध क्षेत्र में
स्नाकोत्तर हिंदी अध्यापक।
तमिल कवि कण्णदास नास्तिक।
वे नेता बदले, आस्तिक बने।
सोच बदली सिद्धार्थ बने बुद्ध।
अशोक सोच बदले निंदनीय सम्राट बने।
जनता सोच बदल मोदीजी को अपनाया।
सोचो-विचारो।सोच बदलो।
यह मरे अनुभव की बात।
यह मेरी मौलिक रचना।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन का प्रणाम।
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