Thursday, March 5, 2015

चुप --छिप -स्वार्थ.


सबेरे उठा;न जाने  कुछ भी लिखने को न सूझा

राजनीति ---

धर्मनीति -

लोकनीति 

सब में भलाई . सब में बुराई .

सकल  जगत में फूल -काँटा 

विष -अमृत 

द्वित्व . 

दया-निर्दया ;

निर्दयता देख निर्दयी की आँखों में भी  अश्रु.

चोरी देख चोर को भी गुस्सा .

भ्रष्टाचारी देख भ्रष्टाचार भी निंदा ;

सत्यवान की प्रशंसा असत्य का काम 

यह्दुनिया ही  दुरंगी;

द्वि जीभ ; द्विआचरण ;

हाथी के दांत खाने के और 

दिखाने के और;

मगर मच्छ आँसू;

क्या लिखूँ ?क्या  छोडूँ?

गुरु का उपदेश --चुप रह.

चुप.छुप.-वे तो ज्ञानी ;

मैं तो अधजल गगरी छलकत जाय.

मेंढक सा टर-टर --

फँस जाता साँप के मुँह में.

चुप -चुप- चुप 

जो बोलता है उसकी चाल --चुप --छिप -स्वार्थ.

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