सबेरे उठा;न जाने कुछ भी लिखने को न सूझा
राजनीति ---
धर्मनीति -
लोकनीति
सब में भलाई . सब में बुराई .
सकल जगत में फूल -काँटा
विष -अमृत
द्वित्व .
दया-निर्दया ;
निर्दयता देख निर्दयी की आँखों में भी अश्रु.
चोरी देख चोर को भी गुस्सा .
भ्रष्टाचारी देख भ्रष्टाचार भी निंदा ;
सत्यवान की प्रशंसा असत्य का काम
यह्दुनिया ही दुरंगी;
द्वि जीभ ; द्विआचरण ;
हाथी के दांत खाने के और
दिखाने के और;
मगर मच्छ आँसू;
क्या लिखूँ ?क्या छोडूँ?
गुरु का उपदेश --चुप रह.
चुप.छुप.-वे तो ज्ञानी ;
मैं तो अधजल गगरी छलकत जाय.
मेंढक सा टर-टर --
फँस जाता साँप के मुँह में.
चुप -चुप- चुप
जो बोलता है उसकी चाल --चुप --छिप -स्वार्थ.
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