Wednesday, March 11, 2015

संसार तो दुरंगी

जग  में  तूफान -आंधी -सुनामी  होता है,भूकंप  भी ;

नहीं कह सकते मनुष्य 

मन ,दयालु के बीच एक निर्दयी है काफी 


एक घड़े भर की भात में ,एक बूँद विष भी काफी;

प्यार भरा संसार है तो घृणा की बात क्यों;

सत्य भरा  संसार हो तो असत्य  का अस्तितिव क्यों?


सुख मय  संसार्  है  तो दुःख कीबात  क्यों?

फूल ही फूल है तो कांटे भी तो है साथ ही;

मृदु रेत है तो उसमें कंकट  भी  मिश्रित है.


बिजली की रोशनी  है तो उसमें धक्का भी साथ है;

अग्नि मिटाती सर्दीतो  जलन  की क्रिया भी;

धूप ही धूप में छाया भी है जगत में;

पतझड़ है तो वसंत भी ;

संसार है अति विस्तार ,

संसार  है अति निराली 


जानना -पहचानना अति दुर्लभ;दुश्वार.

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