Saturday, November 5, 2016

भारतीय भाषाएँ

केवल हिंदी की ही हालत नहीं , सभी भारतीय भाषाओं की यही हालत है.
तमिल माध्यम एम्.कम ., स्नातकोत्तर को नौकरी नहीं मिलती; उसको तकनीकी अर्थ-शास्त्र शब्द अंग्रेज़ी में भी पारंगत होना है.
अंग्रेज़ी पारंगत नेहरु मंत्री मंडल का दोष है, जिन्होंने भारतीय भाषा को न काबिलियत समझा; उन्होंने चीन, जापान, रूस, फ्रांस आदि बिन अंग्रेज़ी प्रगति देशों पर ध्यान नहीं गया. पर गांधीजी ने मातृभाषा के महत्त्व पर जोर दिया.
विनोबाजी ने दिया; पर गांधीजी को गोली से उड़ा दिया; विनोबा को केवल भूदान यज्ञ की तारीफ मिली;
सभी भारतीय भाषाओं की एक ही लिपि देवनागरी हो, इस नारे पर आज तक किसी का ध्यान नहीं गया;
तमिल मेरी प्यारी या हिन्दी मेरी जान कहने मात्र से "भूखा भजन न गोपाला"' मुझे तो हिंदी के कारण ही नौकरी मिली;
कितने लोगों को मिलेगी;
जिस भाषा के द्वारा भूख न मिटेगी,
उस भाषा का लोक प्रिय होना असंभव की बात है.
सिर्फ न ही नहीं , सभी भाषा के अध्यापक / प्राध्यापक नहीं चाहते कि अपना बेटा या बेटी हिंदी या तमिल के स्नातक बने.

कारण अपने पद का कटु अनुभव.
इस सत्य को मानना ही पड़ेगा.
क्या आपका बेटा हिंदी क्षेत्र में है ?
तो बधाइयाँ.

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