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Wednesday, January 31, 2018

रचनाएँ

रचना ऐसी हो
अनुशासन, आत्म संयम
देश भक्ति,  का विकसित करें.
पर आजकल की  पट कथाएँ
युवकों को मन में
प्रशासकों के प्रति,
शासकों के प्रति,
शिक्षा संस्थाओं के प्रति,
पुलिस, न्यायालय के प्रति
अविश्वास, शंका, बढा रही हैं.
नायक पहले खलनायक, बाद में नायक,
वही समाज में न्याय के लिए  लडता.
मंत्रियों को डराता,
सांसद, विधायक  की जीत हार
बदमाश सुधरा नायक  पर निर्भर.
क्या यह रचनाकार का दोष है?
रचनाएँ समाज का प्रतिबिंब.
समाज का दर्पण,
यह दोष रचनाकारों का नहीं,
विषैला विचारों के स्वार्थी  नेताओं के.
ईश्वर   के आकार ले खंडित जनता.
भाषा भेद से संपर्क का दोष,
विचारों की एकता,
धार्मिकता से अति दूर
नकली आश्रमवासी,
 भक्ति तीर्थस्थान में ठगनेवाले दलाल,
 सोचो समझो  नश्वर दुनिया,
अस्थायी  जवानी, अस्थायी  प्राण,
चंचल मन, चंचला धन,
सोचो समझो, सुधर,  सुधार.

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