नमस्ते वणक्कम,एस.अनंतकृष्णन का।।
स्वच्छता
आसपास की स्वच्छता
पंचतत्वों की स्वच्छता
थूक बगैर सड़कें,
धुएं-धूल रहित वातावरण,
अति अनिवार्य है सही।।
मानव के तन, मन,धन
अति स्वच्छ हो,
आँखों द्वारा जो देखते हैं,
उनके प्रति चाहिए स्वच्छता।
बुरी नजरों से देखना भी
मानव के लिए अति कलंग।
जलन भरी दृष्टि,चाह भरी दृष्टि,
घृणा भरी दृष्टि, भेद भरी दृष्टि,
लोभ भरी दृष्टि ,लालच भरी
स्वच्छता नहीं जान।
बोली में न हो ईर्ष्या,
बोली में न हो कठोरता।
बोली में प्रकट न हो
दर्द भरा शब्द,
ईर्ष्या भरा शब्द।
प्रेम भरे मधुर शब्द प्रकट हो।।
न करें मन को प्रदूषित शब्द।।
वातावरण की शुद्धता से
सोच विचार की शुद्धता,
कर्तव्य की स्वच्छता,
रिश्वत भ्रष्टाचार रहित आमदनी,
चाहिए मानव को,
वही स्वच्छता भरा जीवन
स्वस्थ मन,स्वस्थ तन,स्वस्थ धन
स्वच्छ जीवन ,
चिंता रहित जीवन में चिंता तक।।
कबीर का कहना है,
माला फेरते जुग भया,
फिरा न मन का फेर।।
मनका मन का डारी दें,
मन का मनका फेर।।
तरंगित मन में शांति नहीं,
भटकते मन में शांति नहीं।
लक्ष्य एक दृढ़ मन एकाग्रता,
उपलक्ष्य के पीछे मुड़ना
मंजिल के शिखर की अड़चनें।
जानो, पहचानो,जागो,जगाओ।
तन,मन,धन स्वच्छ रहें,
वही मानव मूल्य भरा जीवन।।
प्रदूषण रहितभारत,
आग,आकाश,भूमि,हवा,नीर ही नहीं,
सोच, विचार,कर्म,सेवा भी हो हस्वच्छ।
मताधिकार देश की प्रगति के लिए।
मत लो मत के लिए ओट।
मत लो मत देने के लिए नोट।।
जय हो भारत !जय हो धर्म की।
पराजय हो मजहबी जाति संप्रदाय की।।
स्वच्छ गगन, स्वच्छ मन।
पवित्र विचार।
स्वरचित नव कविता
एस.अनंतकृष्णन की।।
स्वरचनाकार स्वचिंतक
सौहार्द सम्मान प्राप्त हिंदी प्रेमी प्रचारक।
२८-९-२३.
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