नमस्ते वणक्कम।
श्रद्धालु भक्त ईश्वर पर
दृढ़ विश्वास करके
आत्मा को पहचानकर
आत्मबोध और आत्मज्ञान पाते हैं।
तब मनुष्य मनुष्य में भेद नहीं देखते।
समदृष्टि से सुख दुख को है देखते।
प्यार शारीरिक सुख के लिए नहीं,
आत्मानंद के लिए करके
परमानंद की अनुभूति करते हैं।
जग कल्याण के लिए,
मनुष्य को सत्यमार्ग पर लाने के लिए
अपने तन मन को लगाते हैं।
जय श्रीराम आत्माराम बनते हैं ।
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