Friday, March 22, 2024
ख्वाहिश
नमस्ते.साहित्य बोध दिल्ली इकाई को एस. अनंतकृष्णन का सादर नमस्कार.
विषय-ख्वाहिशें मनुष्य को गुलाम बना देती हैं।
विधा- अपनी हिंदी,अपने विचार,अपनी शैली, भावाभिव्यक्ति
22-3-24
पूर्वजों के स्वर्ण वचन
यकीनन् आनंदप्रद,,
स्थाई संतोषप्रद।
बुद्ध भगान ने कहा--
सभी दुखों के मूल में इच्छाएँ प्रधान।
कबीर न कहा--
चाह गयी चिंता मिटी।
मनुआ बेपरवाह।
जिन्हें कुछ न चाहिए,वही शाहँशाह।
सनातन धर्म कहता है-
इच्छा् शक्ति, ज्ञान शक्ति,क्रिया शक्ति
तीनों नहीं तो प्रपंच शून्य ।
ख्वाबें पूरी होने ख्वाहिशों की ज़रूरत ।
ख्वाहिशें न तो न इश्क,न सृष्टि,न खोज,न आविष्कार।
ख्वाहिश है साहित्य बोध में
कविता लिखने की, प्रमाण पत्र पाने की।
न तो न लिखने की प्रेरणा।
ख्वाहिशें दैविक,जन हित हो,
शैतानी इच्छाएँ गुलाम बना देती ।
धन लोलुप्ता,देश द्रोह की बदख्वाहशें
जुआ,नशा,वेश्या गमन गुलाम ही नहीं.
बेगार भी बना देती।
पद, नौकरी,खिताब की ख्वाहिशें
अंग्रेजी देती तो दिव्य मातृभाषाएँ गुलाम।
एस.अनंतकृष्णन,तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी,प्रचारक
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