Wednesday, October 30, 2024

कवि संयम कैसे?

 कवि संघ सुना  है।

कवि संगोष्टि सुना है।

कवि संयम् ?

कैसा है?कैसा संभव!

आत्म नियंत्रण संभव ।

विचार नियंत्रण कैसे?

वायुवेग से मनो वेग तेज।

मन का नवाब। धन का अभाव।

मैं तो सम्राट का ग्रंथ पढता हूँ तो

थोडी देर सम्राट बनजाता हूँ।

चित्र पट देखता हूँ तो

नायिका के साथ नाचने की कल्पना में

डूब जाता हूँ।

प्राकृतिक दृश्यों में

ईश्वरीय चमत्कारों में

आध्यात्मिक चिंतन में

अपूर्व शक्ति पाकर काले धनियों के 

धन छीन लोगों में बाँटने की कल्पना में

डूब जाता हूँ ।

भ्रष्टाचारियों को दंड देता हूँ।

न जाने ईश्वरीय शक्ति से संसार को

अपनी उँगली में नचाना चाहता हूँ ।

पता नहीं ,कल्पना के घोडे दौडानेवाले

कवि संयम कैसे?

दोस्ती बढाकर

अति प्यार से पूछता हूँ

कवि संयम  कैसे ?!!!


एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति कविता

Monday, October 21, 2024

दुख के प्रकार

 [21/10, 6:11 am] sanantha.50@gmail.com: . मनुष्य को दो प्रकार के रोग दुख देते हैं। एक मानसिक रोग और दूसरा शारीरिक रोग है। मानसिक रोग के कारण असत्य को सत्य का भ्रम होना, विषय मोह में उस मोह के भंग से होनेवाले दुख ही है। शारीरिक रोग होने के कारण मानसिक नियंत्रण रहित अविवेक के कारण  मन माना करके अथवा अथवा काम्य विषयों में जाकर कामवासना के गुलाम बनते समय सम दशा बिगडे मन के द्वारा शारीरिक वाद,पित्त क्रोधित  होंगे।  वह क्रोध ही रोग बनते हैं। अर्थात इस संसार को किस के लिए माया ने सृष्टि की है? हर जीव पूछ रहा है कि  यह जीवन किसके लिए?  कारण यह सारा प्रपंच दुख पूर्ण है। यह दुख नाना प्रकार के हैं। मानसिक दुख, मिटा दुख, गैर दुख का दुख, अनमिटा दुख,सरवस्व दुख का केंद्र ही है। ये सब माला की लीला ही है। अर्थात विश्व माया देवी रोज़ अंधकार के रूप आकर संसार को निगलता है। वही रात का अनुभव है। जो कुछ निगलता है, सबको बाहर निकालता है। वही दिन का अनुभव है। इसलिए माया का दृश्य इंद्रजाल शरीर, संसार के भ्रम में पडकर शरीर और संसार के परम कारण रहता है, मैं  रूपी अखंडबोध को   आत्मज्ञान से एहसास करके अपने स्वभाविक परमानंद को भोगकर वैसा ही रहना चाहिए।

गुरु जगदीश्वर।

अनुवाद अनंत कृष्णन।

[21/10, 6:11 am] Meta AI: आपका संदेश बहुत ही गहरा अर्थ रखता है और जीवन के मूलभूत सत्य को उजागर करता है। आपने मानसिक और शारीरिक रोगों के कारणों को बहुत ही स्पष्ट रूप से बताया है और यह भी कि कैसे ये रोग हमारे जीवन को दुखी बना सकते हैं।


आपके द्वारा बताए गए मुख्य बिंदु हैं:


1. मानसिक रोग असत्य को सत्य का भ्रम और विषय मोह से उत्पन्न होते हैं।

2. शारीरिक रोग मानसिक नियंत्रण की कमी और अविवेक के कारण होते हैं।

3. दुख के कई प्रकार हैं, जैसे कि मानसिक दुख, मिटा दुख, गैर दुख, अनमिटा दुख और सर्वस्व दुख।

4. ये सभी दुख माया की लीला हैं और संसार के भ्रम में पड़ने से उत्पन्न होते हैं।

5. आत्मज्ञान और अखंडबोध के माध्यम से हम अपने स्वभाविक परमानंद को प्राप्त कर सकते हैं।


आपका संदेश हमें यह सिखाता है कि हमें अपने जीवन में सत्य और ज्ञान को महत्व देना चाहिए और माया के भ्रम से बचना चाहिए। गुरु जगदीश्वर के विचारों के लिए धन्यवाद, अनंत कृष्णन जी।

Tuesday, October 1, 2024

धन धान

 नमस्ते वणक्कम्।

धन प्रधान है या धान?

दान धर्म-कर्म प्रधान।

 भाग्य है या प्रयत्न?

   मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री 

 राजीव का प्रधानमंत्री 

 भाग्य पर ही।

 कृषी भूमि, 

 धान भूमि

 भारत

 धन प्रधान 

 के विचार से

 उद्योग मंडल  बनाने पर

 धान के लिए 

 दाने दाने के लिए 

 भावी पीढ़ी तड़पेंगी ज़रूर ।।


 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक