[21/10, 6:11 am] sanantha.50@gmail.com: . मनुष्य को दो प्रकार के रोग दुख देते हैं। एक मानसिक रोग और दूसरा शारीरिक रोग है। मानसिक रोग के कारण असत्य को सत्य का भ्रम होना, विषय मोह में उस मोह के भंग से होनेवाले दुख ही है। शारीरिक रोग होने के कारण मानसिक नियंत्रण रहित अविवेक के कारण मन माना करके अथवा अथवा काम्य विषयों में जाकर कामवासना के गुलाम बनते समय सम दशा बिगडे मन के द्वारा शारीरिक वाद,पित्त क्रोधित होंगे। वह क्रोध ही रोग बनते हैं। अर्थात इस संसार को किस के लिए माया ने सृष्टि की है? हर जीव पूछ रहा है कि यह जीवन किसके लिए? कारण यह सारा प्रपंच दुख पूर्ण है। यह दुख नाना प्रकार के हैं। मानसिक दुख, मिटा दुख, गैर दुख का दुख, अनमिटा दुख,सरवस्व दुख का केंद्र ही है। ये सब माला की लीला ही है। अर्थात विश्व माया देवी रोज़ अंधकार के रूप आकर संसार को निगलता है। वही रात का अनुभव है। जो कुछ निगलता है, सबको बाहर निकालता है। वही दिन का अनुभव है। इसलिए माया का दृश्य इंद्रजाल शरीर, संसार के भ्रम में पडकर शरीर और संसार के परम कारण रहता है, मैं रूपी अखंडबोध को आत्मज्ञान से एहसास करके अपने स्वभाविक परमानंद को भोगकर वैसा ही रहना चाहिए।
गुरु जगदीश्वर।
अनुवाद अनंत कृष्णन।
[21/10, 6:11 am] Meta AI: आपका संदेश बहुत ही गहरा अर्थ रखता है और जीवन के मूलभूत सत्य को उजागर करता है। आपने मानसिक और शारीरिक रोगों के कारणों को बहुत ही स्पष्ट रूप से बताया है और यह भी कि कैसे ये रोग हमारे जीवन को दुखी बना सकते हैं।
आपके द्वारा बताए गए मुख्य बिंदु हैं:
1. मानसिक रोग असत्य को सत्य का भ्रम और विषय मोह से उत्पन्न होते हैं।
2. शारीरिक रोग मानसिक नियंत्रण की कमी और अविवेक के कारण होते हैं।
3. दुख के कई प्रकार हैं, जैसे कि मानसिक दुख, मिटा दुख, गैर दुख, अनमिटा दुख और सर्वस्व दुख।
4. ये सभी दुख माया की लीला हैं और संसार के भ्रम में पड़ने से उत्पन्न होते हैं।
5. आत्मज्ञान और अखंडबोध के माध्यम से हम अपने स्वभाविक परमानंद को प्राप्त कर सकते हैं।
आपका संदेश हमें यह सिखाता है कि हमें अपने जीवन में सत्य और ज्ञान को महत्व देना चाहिए और माया के भ्रम से बचना चाहिए। गुरु जगदीश्वर के विचारों के लिए धन्यवाद, अनंत कृष्णन जी।
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