Wednesday, February 11, 2015

मैं हूँ प्रचारक. हिंदी का





मैं हूँ भाग्यशाली ,क्यों ?


   मैं हूँ एक भाग्यवान --कैसे ?क्यों ?कहते हो ;


पूछेगा कोई तो मेरे  उत्तर निकलेगा   यों ही ---

मैं हूँ तमिलनाडु का एक हिंदी प्रचारक;


मेरी माँ  गोमतिजी एक हिंदी प्रचारिका.

हम है प्रचारक तीव्र उस समय के ,

तब हिन्दी विरोध के कारण  जल रही थी गाड़ियाँ;

राजनैतिक चाल-छल में ,

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की नींव हिल रही थी;

तब  मेरे हिंदी क्षेत्र प्रवेश;

 महात्मा मोहनदास करमचंद गांधीजी की 

दूरदर्शिता  महान विभूति कीआस्था  में 

हम भी गिलहरियों  के समान हिलते नींव को 

मज़बूत बनाने में सैकड़ों छात्रों के कंकट जोड़ डाल रहे थे;

मेवा मिले या न मिले सेवा करें तो मिलेगा  संतोष;

मेरी नियुक्ति भी एक स्कूल में हुई ,

आन्दोलन के उस भयानक स्थिति में ,

हिन्दी अध्यापक के रूप में ,

जब मेरे अन्य  सहपाठी थे बेकार;

हिंदी  द्वि भाषा सूत्र के कारण  ,

पाठशालाओं से तो चली ,

पर  मेरे घर में तो छात्र संख्या बड़ी;

सेवा तो शर्त के अनुसार बिलकुल मुफ्त ;

एकसाल -दो साल में मिलती एक अध्यापक विद्यालय अनुदान;

मैं और माँ  भूखा -प्यासा प्रचार में लगे तो 

एक आत्म -संतोष; आत्म -शान्ति -आत्म -सम्मान;

जहां भी शहर में जाए कोई न कोई कहता "नमस्ते जी;


उस समय का वह आनंद ब्रह्मानंद सा लगता;


प्रचार छोड़ चेन्नई में वेस्ली स्कूल में ,

हिन्दी अध्यापक की नौकरी मिली 


मेवा तो मिला ,सेवा सम्मान तो प्रचारक के रूप में ;


इसीलिये  तो  मैं भाग्यवान हूँ 


सत्याग्रही  आचार्य जो मद्रास सभा के  प्रबंधक  थे 

उनके द्वारा  सूचना मिली  वेस्ली स्कूल  चेन्नई में 

हिन्दी अध्यापक पद  खाली है ;जाइए ;मिलिए ;

पांडिच्चेरी  सभा  शाखा में हुई मेरी नियुक्ति;

संगठक थे कर्तव्य परायण आर.के. नरसिम्हन जी;

सचिव थे श्री एम् .सुब्रह्मणयम जी ; ई.तंगप्पनजी

आठ महीने की नौकरी इस्तीफा करके चला ;

मेरे शहर पलनी को ;

भगवान ने भागीरथ प्रयत्न करने  पर भी भगा दिया चेन्नई को;



वेस्ली स्कूल के चार साल की नौकरी आराम से बीता;


स्कूल जाता; छात्र बंद; स्कूल बंद ; वेतन पक्का ;


तब से  श्री वेंकटेश्वर जी ,

तिरुमलै बालाजी की पूरी कृपा मुझपर लग गयी;



वेस्ली के शेल्वादास  जो बी;टी ;विज्ञान के  अध्यापक थे 

मुझे एम् .ए;पढने की प्रेरणा दी;

सौ रूपये छूट परीक्षा शुल्क सहित ,

दो सौ रूपये में एम् .ए;

मेहनत करने की शक्ति ,बुद्धी दोनों  दीं  

भगवान गोविन्दजी ने;

तभी स्कूल में हायर सेकंडरी का परिचय;

एम्.ए के  परीक्षा फल के  आते ही  हिन्दू स्कूल में 


स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक;

फिर क्या एक भाग्यवान प्रचारक  केलिए;


मैं जितना हो सके .उतना सत्य का पालन किया .


भले ही लौकिकता के कारण कुछ झूठों को साथ देना पड़ा;


हिन्दू एजुकेशनल आर्गेनाईजेशन 


 एक मामूली संगठन नहीं,


बड़े तीव्र मेधावी अटर्नी जनरल परासरण  समान दिग्गज 


 न केवल ज्ञान के बल्कि 

लक्ष्मी के वर-पुत्र ;

सत्कैंकर्य शिरोमणि एन.सी राघवाचार्य ,

प्रतिभाशाली वकील अध्यक्ष थे 

.
प्रसिद्ध ऐ. ए.एस/  ऐ.पि. एस.  सदस्य सचिवगण;


अध्यापक सघ की ओर से हर साल बालाजी दर्शन;

मेरे सह -अध्यापक कितने मिलनसार ,

कितने सहृदय दानी ,मित्रता के प्रतीक 

उस संस्था  ने मुझे प्रधान अध्यापक पद पर भी  बिठा दिया;

हम मद्रास शहर के दो प्रचारक पि.एस .चंद्रशेखर ,सनातन धर्म स्कूल के 


और मैं हिन्दू हायर सेकंडरी के 

दोनों को अपने दायरे में उच्च पद मिला;

हिन्दी प्रचारक --हेडमास्टर    सम्मान  ;

फिर भी मैं भाग्यवान -सभा ने सम्मान दिया;

मद्रास प्रचारक संघ ने दिया; भले ही मैं  दूर रहा.

बेस्ट हेड मास्टर का साम्मान दो संस्थाओं से 

उनमे एक चेन्तमिल  विरुम्बिकल मामन्रम ;

अब कहिए-- मैं भाग्यवान इसलिए हूँ -

मैं एक हिंदी प्रचारक मामूली.

अब अवकाश प्राप्त 30 हज़ार का सरकारी पेंशनर .


धन्य पूज्य मोहनदास महात्मा राष्ट्रपिता 

जिनकी दूरदर्शिता ने हज़ारों प्रचारकों को सक्रीय बनाया है.


ई. तागाप्पंजी ,टी.पि.वीराराघवन जी ,एम्; सुब्रह्मनियम जी .

आर.के. नरसिम्हन जी,श्री सुमतींद्रजी ,श्री श्रद्धेय वि.एस .राधाकृष्णन जी 

आदि सभा के सचिवगण
 ,
जिन्होंने सभा को मज़बूत बनाने में 

प्रचारकों को हिंदी विरोध की मरणावस्था  में प्रोत्साहित किया;

सभा को मज़बूत किया.

केंद्र सभा से परिचित नहीं  था  उस समय ;

.
धन्य है १९६५-से ७५ तक के सचिव 

,संगठक ,प्रधान सचिव ,परीक्षा सचिव ,

अन्य कार्य कर्ता,प्रचारक 

जिनके अथक प्रयत्न से 

साथ ही  कार्यकारिणी समिति की योजना से 


आज तमिलनाडु में  एक मात्र संस्था सभा ;

देश का श्रेष्ठ  काम;  मूक साधना का प्रतीक 

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा.

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