मैं हूँ भाग्यशाली ,क्यों ?
मैं हूँ एक भाग्यवान --कैसे ?क्यों ?कहते हो ;
पूछेगा कोई तो मेरे उत्तर निकलेगा यों ही ---
मैं हूँ तमिलनाडु का एक हिंदी प्रचारक;
मेरी माँ गोमतिजी एक हिंदी प्रचारिका.
हम है प्रचारक तीव्र उस समय के ,
तब हिन्दी विरोध के कारण जल रही थी गाड़ियाँ;
राजनैतिक चाल-छल में ,
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की नींव हिल रही थी;
तब मेरे हिंदी क्षेत्र प्रवेश;
महात्मा मोहनदास करमचंद गांधीजी की
दूरदर्शिता महान विभूति कीआस्था में
हम भी गिलहरियों के समान हिलते नींव को
मज़बूत बनाने में सैकड़ों छात्रों के कंकट जोड़ डाल रहे थे;
मेवा मिले या न मिले सेवा करें तो मिलेगा संतोष;
मेरी नियुक्ति भी एक स्कूल में हुई ,
आन्दोलन के उस भयानक स्थिति में ,
हिन्दी अध्यापक के रूप में ,
जब मेरे अन्य सहपाठी थे बेकार;
हिंदी द्वि भाषा सूत्र के कारण ,
पाठशालाओं से तो चली ,
पर मेरे घर में तो छात्र संख्या बड़ी;
सेवा तो शर्त के अनुसार बिलकुल मुफ्त ;
एकसाल -दो साल में मिलती एक अध्यापक विद्यालय अनुदान;
मैं और माँ भूखा -प्यासा प्रचार में लगे तो
एक आत्म -संतोष; आत्म -शान्ति -आत्म -सम्मान;
जहां भी शहर में जाए कोई न कोई कहता "नमस्ते जी;
उस समय का वह आनंद ब्रह्मानंद सा लगता;
प्रचार छोड़ चेन्नई में वेस्ली स्कूल में ,
हिन्दी अध्यापक की नौकरी मिली
मेवा तो मिला ,सेवा सम्मान तो प्रचारक के रूप में ;
इसीलिये तो मैं भाग्यवान हूँ
सत्याग्रही आचार्य जो मद्रास सभा के प्रबंधक थे
उनके द्वारा सूचना मिली वेस्ली स्कूल चेन्नई में
हिन्दी अध्यापक पद खाली है ;जाइए ;मिलिए ;
पांडिच्चेरी सभा शाखा में हुई मेरी नियुक्ति;
संगठक थे कर्तव्य परायण आर.के. नरसिम्हन जी;
सचिव थे श्री एम् .सुब्रह्मणयम जी ; ई.तंगप्पनजी
आठ महीने की नौकरी इस्तीफा करके चला ;
मेरे शहर पलनी को ;
भगवान ने भागीरथ प्रयत्न करने पर भी भगा दिया चेन्नई को;
वेस्ली स्कूल के चार साल की नौकरी आराम से बीता;
स्कूल जाता; छात्र बंद; स्कूल बंद ; वेतन पक्का ;
तब से श्री वेंकटेश्वर जी ,
तिरुमलै बालाजी की पूरी कृपा मुझपर लग गयी;
वेस्ली के शेल्वादास जो बी;टी ;विज्ञान के अध्यापक थे
मुझे एम् .ए;पढने की प्रेरणा दी;
सौ रूपये छूट परीक्षा शुल्क सहित ,
दो सौ रूपये में एम् .ए;
मेहनत करने की शक्ति ,बुद्धी दोनों दीं
भगवान गोविन्दजी ने;
तभी स्कूल में हायर सेकंडरी का परिचय;
एम्.ए के परीक्षा फल के आते ही हिन्दू स्कूल में
स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक;
फिर क्या एक भाग्यवान प्रचारक केलिए;
मैं जितना हो सके .उतना सत्य का पालन किया .
भले ही लौकिकता के कारण कुछ झूठों को साथ देना पड़ा;
हिन्दू एजुकेशनल आर्गेनाईजेशन
एक मामूली संगठन नहीं,
बड़े तीव्र मेधावी अटर्नी जनरल परासरण समान दिग्गज
न केवल ज्ञान के बल्कि
लक्ष्मी के वर-पुत्र ;
सत्कैंकर्य शिरोमणि एन.सी राघवाचार्य ,
प्रतिभाशाली वकील अध्यक्ष थे
.
प्रसिद्ध ऐ. ए.एस/ ऐ.पि. एस. सदस्य सचिवगण;
अध्यापक सघ की ओर से हर साल बालाजी दर्शन;
मेरे सह -अध्यापक कितने मिलनसार ,
कितने सहृदय दानी ,मित्रता के प्रतीक
उस संस्था ने मुझे प्रधान अध्यापक पद पर भी बिठा दिया;
हम मद्रास शहर के दो प्रचारक पि.एस .चंद्रशेखर ,सनातन धर्म स्कूल के
और मैं हिन्दू हायर सेकंडरी के
दोनों को अपने दायरे में उच्च पद मिला;
हिन्दी प्रचारक --हेडमास्टर सम्मान ;
फिर भी मैं भाग्यवान -सभा ने सम्मान दिया;
मद्रास प्रचारक संघ ने दिया; भले ही मैं दूर रहा.
बेस्ट हेड मास्टर का साम्मान दो संस्थाओं से
उनमे एक चेन्तमिल विरुम्बिकल मामन्रम ;
अब कहिए-- मैं भाग्यवान इसलिए हूँ -
मैं एक हिंदी प्रचारक मामूली.
अब अवकाश प्राप्त 30 हज़ार का सरकारी पेंशनर .
धन्य पूज्य मोहनदास महात्मा राष्ट्रपिता
जिनकी दूरदर्शिता ने हज़ारों प्रचारकों को सक्रीय बनाया है.
ई. तागाप्पंजी ,टी.पि.वीराराघवन जी ,एम्; सुब्रह्मनियम जी .
आर.के. नरसिम्हन जी,श्री सुमतींद्रजी ,श्री श्रद्धेय वि.एस .राधाकृष्णन जी
आदि सभा के सचिवगण
,
जिन्होंने सभा को मज़बूत बनाने में
प्रचारकों को हिंदी विरोध की मरणावस्था में प्रोत्साहित किया;
सभा को मज़बूत किया.
केंद्र सभा से परिचित नहीं था उस समय ;
.
धन्य है १९६५-से ७५ तक के सचिव
,संगठक ,प्रधान सचिव ,परीक्षा सचिव ,
अन्य कार्य कर्ता,प्रचारक
जिनके अथक प्रयत्न से
साथ ही कार्यकारिणी समिति की योजना से
आज तमिलनाडु में एक मात्र संस्था सभा ;
देश का श्रेष्ठ काम; मूक साधना का प्रतीक
दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा.
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