Saturday, February 14, 2015

हिन्दू धर्म --अंधविश्वास पर लूटते हैं ?

हिन्दू धर्म सम  अर्थात सनातन धर्म समान 

सत-मार्ग ,त्याग , दान -पुण्य आदि सिखानेवाला 

कोई और अति प्राचीन शिष्ट मार्ग और कोई नहीं है.

बड़ी भूल हमारे पूर्वजों ने जो की है  वही तो 


उदार धर्म को संकीर्ण बना दिया.

ज्ञान के भण्डार वेद -उपनिषद् आदि को 

सार्वजनिक न बनाकर एक अमुक वर्ग की सीमा में बांधकर रखा.

संस्कृत उन्नत भाषा को अन्ग्रेजी जैसे   सार्वजनिक न बनाकर 

उनको एक चौथायीभाषा  बनायी.

शिक्षा सब को देना मना कर दिया;

आदर्श  साधू -संतों के शिष्य  स्वार्थ बने ,

तरु तले बैठकर करतले भिक्षा ,तरु तले वासा  छोड़ 

धार्मिक क्षेत्रों में भी बाह्याडम्बर तथा अंधविश्वास  ,

सोना -चाँदी हीरे -जवाहरात  को प्रधानता देने  लगे;

मठाधिपति  की धोखे की कहानियाँ बाहर आयी ;

पुण्य -क्षेत्र व्यापारिक केंद्र बनने  राजनीति साथ देने लगी;

तीर्थ स्थानों में जो ठगते हैं ,
उन्हें ठग की संज्ञा का अर्थ यों कहने लगे 

भगवान् की परीक्षा;
इन व्यापारिक केंद्र जो हज़ारों  दिन ब दिन 

प्रसिदध  मंदिरों में बढ़ रहे हैं ,

उनके ठग के साथ देने वाले क़ानून के भक्षक.
इन   ठगों  को बढाने में साथ दे रहे हैं;
नकली रुद्राक्ष ,नकली चन्दन ,कितनी नकली चीज़ें 

एक सौ की चीज़ को काम घटाकर चतुर बीस रूपये में लेता हैं तो 

उस बीस की चीज़ को अन्धविश्वासी सौ रूपये में ही लेता है;
उनसे पूछें तो कहते हैं पुण्य क्षेत्र में धोखा खाना भी पुण्य है.

सबको पता है तिलक -चन्दन आदि लगाकर लूटते हैं ,

पुलिस को ही पता हैं ,

तिलक लगाकर लूटता हैं ,

फिर भी चुप रहते हैं .

ऐसे कदम कदम पर धोखा --

जब तक इसको नहीं रोकते तब तक 

हिन्दू धर्म पर हिन्दू ही दोषारोपण करता रहेगा.

तब हिन्दू धर्म में एक ही आवाज नहीं उठेगी.



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