Wednesday, September 11, 2019

सुख-दुख

मंच को प्रणाम। 
 शीर्षक  - सुख-दुख।
किसी कवि ने लिखा--
सुख-दुख के मधुर मिलन से
सोता जगता जग जीवन।
सुख अनुभव करते हैं
फिर सुख दुख मिलकर करते हैं।
शारीरिक  सुख
 दुख सुख का मूल।
जन्म रुदन, भूख ,प्यास।
आर्थिक सुख।
 जितना भी मिले
चक्रवर्ती दशरथ के सफेद
कनपटी बाल बुढापे  की सूचना।
राम का पट्टाभिषेक।
मंथरा का षडयंत्र।
राजभोग राजदुख।
सिगरेट का मजा।
फेफड़े का सडन।
मधु नशा ।बुद्धि फेर।
 राज पद त्याग।
महान ज्ञानोदय।
सत्य अहिंसा  शांति का प्रचार।
 मछली की तडप।
मानव का पेट भरना।
मेंढक मकडी चिपकली
आदमखोर शेर चीता बाघ।
निर्दयी  ईश्वरीय रचना।
जिसकी लाठी
उसकी भैंस की नीति।
पराये दुख में अपना सुख।
खेल खेल में भी हार जीत।
रूप कुरूप काले गोरे
नाटे लंबे  तुलनात्मक सुखदुख।
बल दुर्बल रंकराव
सुख दुख से भरा संसार
स्वरचित स्वचिंतक
यस। अनंतकृष्णन।

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