Monday, September 16, 2019

प्रेम के मूल

आज मेरा मन
   प्रेम पर सोचता है।
प्यार पर सोचता है।
इश्क महब्बत पर सोचता है।
तिरसठ के नाते पर
सोचता  है।
ईश्वरीय प्रेम ।
देश प्रेम
विस्तृत प्रेम
संकुचित प्रेम
बहिरंग प्रेम
गोपनीय प्रेम ।
जबर्दस्त प्रेम
अर्थ प्रेम
सार्थक निरर्थक
अर्थ रहित प्रेम।
परिपूर्ण प्रेम
विजय प्रेम
पराजय प्रेम।
प्रेम ही प्रेम ।
पवित्र प्रेम ।
शारीरिक प्रेम।
मानसिक प्रेम।
गिरगिट प्रेम ।
पक्षपात प्रेम ।
तटस्थ प्रेम।
एक पक्षीय प्रेम।
ठगने का  प्रेम।
ठगा प्रेम।
क्षेत्रीय स्थानीय प्रेम ।
विशव प्रेम ।
प्रेम ही प्रेम
सुख प्रदद आनन्द प्रद सन्तोषप्रद।
दुख प्रद असन्तोष प्रद।
प्रेम ही प्रेम जीवन।
चाहे वह स्वर्गीय हो
या नारकीय ।
प्रेम  बगैर न जीवन।
न  आधार जीवन का।

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