संचालक सदस्य संयोजक चाहक रसिक पाठक को तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक
यस अनंतकृष्णन का प्रणाम।
शीर्षक : खड़िया और पोंछन।
फिल्म नहीं देखा।
बचपन की याद आई।
अध्यापक/अध्यापिका
श्याम पट पर लिखते ।
खड़िया का चूर्ण
श्याम पट के किनारे पर।
अध्यापक के बाहर जाते ही
चूर्ण बन जाता, मुख चूर्ण।
मूँछें सफेद मूँछ।
मेरे सहपाठी
चूर्ण से खींचता
अति सुंदर चित्र ।
आज चाक और डस्टर
फिल्म है नहीं देखा।
एक दूसरे की हँसी के कारण।
लड़ने के कारण।
मजाक के कारण।
पाठशालाओं की पुरानी यादें।
अध्यापक के पोंछन के फेंकने से
दोस्त के सिर से रक्त बहना।
अध्यापक का डर।
अभिभावक की गालियाँ।
कभी न भूलते,
यादें हरी हुई।
अतःशुक्रिया साहित्य संगम को।
यस अनंतकृष्णन का प्रणाम।
शीर्षक : खड़िया और पोंछन।
फिल्म नहीं देखा।
बचपन की याद आई।
अध्यापक/अध्यापिका
श्याम पट पर लिखते ।
खड़िया का चूर्ण
श्याम पट के किनारे पर।
अध्यापक के बाहर जाते ही
चूर्ण बन जाता, मुख चूर्ण।
मूँछें सफेद मूँछ।
मेरे सहपाठी
चूर्ण से खींचता
अति सुंदर चित्र ।
आज चाक और डस्टर
फिल्म है नहीं देखा।
एक दूसरे की हँसी के कारण।
लड़ने के कारण।
मजाक के कारण।
पाठशालाओं की पुरानी यादें।
अध्यापक के पोंछन के फेंकने से
दोस्त के सिर से रक्त बहना।
अध्यापक का डर।
अभिभावक की गालियाँ।
कभी न भूलते,
यादें हरी हुई।
अतःशुक्रिया साहित्य संगम को।
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