Thursday, October 13, 2016

धरती और मनुष्य

दिन दिन प्रार्थना


,मन में है भर्त्सना


बद-दर्शना.


कितने विचार शुभ -अशुभ के .



बनेगा मनुष्य अपने विचारों के अनुसार.



मिलेगा फल उसके कर्मानुसार.




किसी मनुष्य के जीवान में शान्ति हैं? या नहीं है ?





कौन सुखी था संसार में ?




पेड़ तो फल ही देता है ,




फिर भी सूखता है ,




पनपता है,


पतझड़ बनकर काटा जाता है.




गोमाता देता है दूध ,




बुढापे में कसाई के हाथ में.




मनुष्य जीवन उस गाय से भी गए बीते हैं ,


भलाई करो , भस्म ,




बुराई करो भस्म.




भला करो तो प्रशंसा के पात्र ,




बुरा करें तो निंदा .




दुर्योधन को सुयोधन कहनेवाले,




रावण के प्रशंसक - है या नहीं जग में.


सांसारिक जीवन दुःख मय



.
सांसारिक जीवन दुःख मय .







अच्छों के भी दुश्मन.



बुरों को भी साथी .




जग तो माया भरी जान.





नेक हो या बद





अंतिम क्रिया तो सम.







स्वर्ग -नरक अलग नहीं ,






यह धरती ही .रौंदता है सब को.

























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