दिन दिन प्रार्थना
,मन में है भर्त्सना
बद-दर्शना.
कितने विचार शुभ -अशुभ के .
बनेगा मनुष्य अपने विचारों के अनुसार.
मिलेगा फल उसके कर्मानुसार.
किसी मनुष्य के जीवान में शान्ति हैं? या नहीं है ?
कौन सुखी था संसार में ?
पेड़ तो फल ही देता है ,
फिर भी सूखता है ,
पनपता है,
पतझड़ बनकर काटा जाता है.
गोमाता देता है दूध ,
बुढापे में कसाई के हाथ में.
मनुष्य जीवन उस गाय से भी गए बीते हैं ,
भलाई करो , भस्म ,
बुराई करो भस्म.
भला करो तो प्रशंसा के पात्र ,
बुरा करें तो निंदा .
दुर्योधन को सुयोधन कहनेवाले,
रावण के प्रशंसक - है या नहीं जग में.
सांसारिक जीवन दुःख मय
.
सांसारिक जीवन दुःख मय .
अच्छों के भी दुश्मन.
बुरों को भी साथी .
जग तो माया भरी जान.
नेक हो या बद
अंतिम क्रिया तो सम.
स्वर्ग -नरक अलग नहीं ,
यह धरती ही .रौंदता है सब को.
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