Friday, February 17, 2017

भगवान की देन

ॐ गणेशाय नमः ;
ॐ कार्तिकेयाय नमः
ॐ शिवाय नमः





ॐ दुर्गायै नमः

प्रातः काल प्रार्थना ,
प्रायः ईश्वर सुनेंगे ही.
प्राप्त यह मनुष्य जन्म
प्रमाण है उसकी दयालुता का.
प्रगति मेरे तीन किलो
एक दिन का मेरा लघु रूप !
अब उम्र ६७ वजन ८२ किलो
बूढा दादा -नाना .
यह सब ईश्वर की कृपा.
अन्याय ,भ्रष्टाचार रिश्वत ;
वे लोग सुखी ,आधुनिक सुविधा से भरपूर.
यों सोचता ,मैं करता ईश्वर की करतूत की निंदा.
सोचा . मैं हूँ सत्य का अवतार ;
ईमानदार का मूल . कर्तव्य का कर्म वीर ;
तभी कबीर के एक दोहे कानों में पड़ा;
अनपढ़ ,नीच ,जुलाहा, जन्म तक संदेह ;
न पिता का जन्मा ,विधर्मियों द्वारा पाला-पोसा;
वह क्या कहता; पर सरल शब्द ,गंभीर अर्थ;
भाई क्या भगवान को दूंढ रहे हो ?
सुनो --तेरा साई तुझमें ,ज्यों पुहपन में वास !
कस्तूरी का मृग ज्यों फिर -फिर ढूंढें घास!!
हरे! बुरा जो देखन मैं गया ,बुरा न मिलिया कोई .
जो दिल खोजा आपना ,मुझसे बुरा न कोय.
मन अपवित्र ,बाह्य वेशभूषा भक्ति का , कुछ न लाभ;
माला फेरत जुग भया , फिरा न मन का फेर.
कर का मनका डारी दें , मन का मनका फेर.
गुदड़ी के लाल सा कबीर , सरल भाषा में तत्वार्थ .
बन गए वाणी का डिक्टेटर;
धार्मिक एकता का सन्देश , मूर्ती पूजा के विरोधी.
बाह्याडम्बरों का खंडन , हमारे कबीर ;
गुरु भक्ति ,ईश्वर भक्ति ,हठयोग ,सत्संग
ज्ञानी या ज्ञान या ब्रह्मानंद किसको ?
चाह गयी चिंता मिटी , मनुआ बे परवाह.
जाको कछु न चाहिए ,वह है शाहंशाह.

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