Thursday, May 4, 2017

ईश्वर के नाम संयम की सीख ;




ईश्वर के नाम संयम की सीख ;
ईश्वर के नाम दान -धर्म -त्याग की सीख ;
ईश्वर के नाम सारहीन अशाश्वत जग की सीख ;

ईश्वर के नाम आत्म नियंत्रण की सीख.
सब सीख तो ठीक ;

पर मंदिरों में ,देवालय में ,मस्जिद में
बाह्याडम्बर ,सोना -चांदी स्वर्ण के खान;

हर प्रार्थना अलग शुल्क ;

अमीरों के अर्थात टिकट लेने वालों के दर्शन जल्दी ;

सोना  चाँदी चढ़ाओ ,पाप से मुक्त ;

नौकरी मिलने ,शादी होने ,परीक्षा उत्तीर्ण होने

मनौतियाँ अपनी-अपनी माँग ,
अपनीअपनी चाहें
पूरी होती हैं ,अजब की बातें ,

एक बार गया ,लाभ ही लाभ ,फिर

हर साल भगवद दर्शन ,मनौतियाँ पूरी।

दिन ब दिन ,साल भर साल भक्तों की भीड़

सम्भालना ,क़ानून -व्यवस्था ,
यातायात ,पानी ,टट्टी की सुविधाएँ
यह तो एक चमत्कार ;

 पुण्य क्षेत्र के अजीबो -गरीब बातें
सचमुच भक्ति क्षेत्र निराली ;

एक और ठगे जाते है ,

दूसरीओर श्रद्धा -भक्ति बढ़ती जाती है ;

असत्याचरण भी ,सत्याचरण भी

पाप कर्म करने.
 अज्ञात डर -आतंक -उत्पात

बड़े बड़े पाप निष्ठों को भी

 झकझोर कर देता जरूर।
यही ईश्वरीय दंड -चमत्कार.

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