Wednesday, July 24, 2024

अस्थाई जीवन

 नमस्ते वणक्कम्।

एस.अनंतकृष्णन का।

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 अस्थाई जीवन।----

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लोग समझते हैं 

पद हैं अधिकार है।

 अंगरक्षक है,

 पर न जानते

 अंगरक्षक ही काल बनेगा।

प्रधान मंत्री को भून डालेगा।

 बम बनकर आएगा,

 शरीर को छिन्न-भिन्न कर देगा।

 कौन सुरक्षित है,अगजग में।

 द्वारका समुद्रतले,

 धनुष्कोटी केवल उजड़े  हैं।

 पूम्पुकार का पता नहीं।

 किले राजमहल उजड़े पड़े हैं।

 मिथ्या शरीर मिथ्या जगत।

 कृष्ण के रहते महाभारत में 

 कितने अधर्म वध,

 रामायण में कपट संन्यासी वेश,

 फिर भी आज कदम कदम पर पाखंड।

 न कोई यहाँ सुरक्षित आराम।

 करोड़पति भले ही वातानुकूलित कमरे में हो,

 वह भी बूढ़ा बन जाता है,

 धन जवानी न दे सकती।

 यम सबकी आँखों मेँ धूल झोंक आ जाता है, हा हाकर मच जाता है।

 सुनामी, मुकुट विषैला कीटाणु 

  न जाने डिंगु, जाने अंजाने रोग।

 केंसर,हार्ट अट्टेक।

 धनी से फुटपाथवासी हँसता है

 निश्छल निष्कपट सहज स्वाभाविक आनंद।

 मीठी नींद सड़क पर।

 अपना अपना भाग्य, 

‌अपना अपना राग 

 अपनी अपनी डफ़ली।

 यही है सांसारिक जीवन।

 चंद दिनों के मेहमान।

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक 

 सौहार्द सम्मान प्राप्त हिंदी सेवी।

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