Friday, July 26, 2024

जिंदगी बनती है

 नमस्ते वणक्कम्।

साहित्य बोध गुजरात इकाई को एसअनंतकृष्णन का।

विषय --जिंदगी दरिया सी है अपने मार्ग बना लेती है।

 विधा --अपनी हिंदी अपने विचार 

             अपनी भावाभिव्यक्ति  स्वतंत्र शैली।

     26-7-24.

जिंदगी शिशु के रूप में,

 जितने कर्ण , कबीर , सीता, आंडाल  जैसे 

 अनाथ रूप में जन्म लेकर,

 श्री कृष्ण जैसे जेल में,

 जंगली नदी के समान

 अनाथालयों में,

  कालीदास जैसे वर पुत्र

 शंकराचार्य बुद्ध महावीर  जैसे दिव्य पुरुष 

 जन्म लेते हैं किसी के गर्भ में 

 पाले जाते हैं किसी की दया से।

पांडु के पुत्र पांडव नाम मात्र के लिए 

  दशरथ के पुत्र खीर से,

 ईसा मसीह के पिता का पता नहीं।

 अपने अपने कर्म फल  के अनुसार 

 बहते हैं बढते हैं किनारा लगते हैं।।

कर्ण को दुर्योधन जैसा,

 अनाथ को अनाथालय जैसा

 पलते हैं भाग्य का बल विचित्र।

 चायवाले भी  विश्व विख्यात प्रधानमंत्री।

  साम्राज्य का उत्थान पतन।

जिंदगी में दरिया सी  अपने मार्ग स्वयं बना लेती है।

 मैं हूं हिंदी विरोधी के शासन में 

 चालीस साल से हिन्दी प्रचारक की जिंदगी।

 हर एक जीव की जिंदगी  स्वयं बन जाती है।

 किसी की जिंदगी नदी सी।

 किसी का नहर सा तो किसी का नाला।

 किसी का मोरा, किसी का तालाब।

 किसी का नंदनवन, किसी का जंगल।

 जिंदगी बनने की सूक्ष्मता मानव बुद्धि के पार।

 सबहीं नचावत राम गोसाईं।।

 एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति कविता मौलिक स्वतंत्र शैली।

 




 

 


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