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Tuesday, July 8, 2025

मेरी हिंदी यात्रा

 मेरा जन्म तमिलनाडु में हुआ। पत्राचार पाठ्यक्रम दिल्ली विश्वविद्यालय में  बी ए, पर मैं अपने तमिलनाडु से न हिला।

 फिर एम.ए, आंध्र प्रदेश वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय में निजी छात्र।

 परीक्षा देने मात्र तिरुप्पति।

 आपको विश्वास न होगा कि केवल सौ रूपये एम.ए, परीक्षा शुल्क के साथ।

 वहाँ दस दिन दो साल ठहरने भोजन सहित 300रूपये।

 आजकल एल् के जी के लिए  25000/-कम से कम।

 बी।एड। मदुरै युनिवर्सिटी।

 एम।एड। 

 हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला।

 पर  शिमला  नहीं देखा।

 दिल्ली न देखा।

 ऐसे घाट घाट की शिक्षा अपने ही घाट में रहकर।

 स्नातक स्नातकोत्तर शिक्षा जो हिंदी क्षेत्र से।

 हिंदी माध्यम से।

हिंदी साहित्य के प्रति रुचि।

  हिंदी माध्यम में अहिंदी भाषी  परीक्षा दी। यह तो माता गोमती जी की देन,

ईश्वरीय वरदान।।

17साल की उम्र में ही हिंदी विरोध तमिलनाडु में 

हिंदी मेरी जीविकोपार्जन की साधना बनी।

 58साल  अवकाश प्राप्त होने तक मेरा क्षेत्र हायर सेकंडरी पाठ्य क्रम तक ही सीमित रहीं। अवकाश ग्रहण के बाद अनुवाद करना धन कमाने नहीं,

 समय काटने का उपयोगी तरीका।

 तमिल में दो ब्लाग और हिंदी में दो ब्लाग लिखा।

 विश्व भर के दो लाख ब्लाग रीडर्स हिंदी तमिल ब्लॉग के दर्शक बने।

 मेरे दोस्त किताब छपकर घाटे में। प्रकाशन का समारोह, पर मैं गीता के अनुसार निष्काम सेवा।

 फल भगवान पर  विश्वास।

भगवान से फल  सद्यःफल नहीं,

 हिंदी साहित्य संस्थान लखनऊ द्वारा 

 साहित्य सौहार्द सम्मान।

 और भी रुचि बढ़ने लगी।

 स्वास्थ्य बीच बीच में काम को शिथिल कर देता  था।

 सनातन धर्म और मानवता पर  एक शोध ग्रंथ  दिव्यप्रेरक कहानी द्वारा प्रकाशित किया।

 मेरे रुझान साहित्य के प्रति बढ़ती जा रही है।

 अब सनातन वेद नामक बृहद तमिल ग्रंथ का हिंदी में अनुवाद कर रहा हूँ।

 भावी पीढ़ी डिजिटल पर हैं।  उनका ध्यान जाएगा तो हिंदी तमिल साहित्य युगयुग तक अमर रहेगा।

हिंदी में लिखने की प्रेरणा --

मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय में  पढ़ते समय छात्रों को लिखने एक वार्षिक पत्रिका निकालते हैं।

 उसमें मुझे द्वितीय पुरस्कार मिला।

तभी से मन में लेखक बनने की रुचि मिली।

 3.मैं अपने लिए लिखता था। अपनी स्वतंत्र शैली से। आजतक प्रमाण पत्र ही पा रहा हूँ। 

किसीने मेरी गलतियों का। संकेत न किया।

 तमिल प्रभाव जरूर पड़ेगा ही। धारावाहिक शैली। 4.भारतीय साहित्य में विचारों की एकता साहित्य की एकता को सुदृढ़ बना रखा है।

उदाहरण के लिए 

 स्वदेशे पूज्यंते राजा, विद्वान सर्वत्र पूज्यंते।

 यह वाक्य  तमिल में भी है।

 कबीर जुलाहा, तिरुवळ्ळुवर जुलाहा।

 दोनों भगवान को मानते हैं। निराकार का ही वर्णन है।

तमिल पंच महाकाव्य, लघु काव्य  ग्रंथ जैन और बौद्धों की देन है।

नाम देखिए मेरे लिए संस्कृत लगेगा।

 महाकाव्य --

शिलप्पाधिकार।

मणिमेखलै

कुंडलकेशी

वलैयापति

जीवक चिंता मणि 

 इन पाँच महा काव्यஅற்

 खंड काव्य

ஹஜ்

नागकुमार काव्य

यशोधरा काव्य 

नीलकेशी

चूड़ामणि।

 इन शीर्षकों से ही भारतीय साहित्यों की मूल भूत एकता का पता लगेगा।

रामायण, महाभारत, वेद उपनिषद, जातक कथाएं 

 सब तमिल में मिलते हैं।

विचारों की एकता, भावों की एकता  सब मिल रहे हैं।

 भाषा के संरक्षण 

 आधुनिक काल में  नहीं के बराबर है।

 देश भर में अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल , साहित्य सभाओं में  युवक युवतियों की कमी,

 अश्लील चित्र पट संगीत का मोह,  जीविकोपार्जन में अधिक आमदनी अंग्रेज़ी के कारण,

 होटल में भी अंग्रेज़ी मिलावट की भाषा,

टंकण में अंग्रेज़ी को ही  युवक प्राथमिकता देते हैं।

तमिल हिंदी भाषा को भी

अंग्रेज़ी लिपि में टंकण।

 उच्च शिक्षा अंग्रेज़ी में।

 शोचनीय विचारणीय : 

तमिल संस्कृत में 

 शिव भगवान प्रधान हैं।

 भारतीय संस्कृति की एकता के लिए आध्यात्मिक चिंतन ही प्रधान है।

 तमिल भगवान मुरुगन को लीजिए। वे कैलाश  से एक फल के लिए  माता पिता से नाराज़ होकर तमिलनाडु आये।

मुर्गा से मुरुगन कहने पर मुर्गा कार्तिक का झंडा है।

 स्कंद पुराण संस्कृत में हैं।

ऐसी सांस्कृतिक एकता है।

 रामेश्वर  और काशी, शंकराचार्य मठ, 

वैष्णव तीर्थ, सब भारतीय आध्यात्मिक चिंतन एकता का  अटल प्रमाण है।

 तमिल संस्कृत अलग है तो ग्रामीण मंदिरों में  मेलों में लोकगीतों में हैं।

 वे देश को पांच क्षेत्रों में 

बाँटा है।

 कुरिंजी - पहाड़ और पहाड़ों के इर्द-गिर्द स्थान 


 मुल्लै --जंगल जंगल के इर्द गिर्द स्थान 

 मरुतम् --खेत खेतों से  घिरे स्थान 

 नेयतल -- समुद्र और समुद्र के इर्द गिर्द स्थान


 पालै  --रेगिस्तान्  रेतीले प्रदेश।

 एक एक क्षेत्र के लोगों के विशेष गुण और कौशल।

 अनुवाद 

 अनुवाद मेरा शौक है।

 तन में जब तक प्राण,

 तमिल हिंदी का अनुवाद करता रहूँगा। धन के लिए नहीं तन सुख और मन सुख के लिए भारतीय भाषा प्रेमी  लक्ष्मी पुत्र  , केंद्र सरकार और राज्य सरकार को चाहिए कि अंग्रेज़ी आय के समान  अधिक धन से प्रोत्साहित करना चाहिए। विभिन्न तकनीकी परीक्षाएँ हिंदी और भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा देकर चलानी चाहिए।

  सरकार को हिंदी प्रचारकों को हिंदी सम्मेलनों में भाग लेने रेल्वे में आरक्षण की प्राथमिकता मुफ्त या शुल्क में 

 सहूलियतें देनी चाहिए।

 आजकल मुझे सम्मानित करने  अनेक साहित्य दल बुलाते हैं।  रेल का खर्च पंजीकृत शुल्क दस हजार बीस हज़ार।  उन सम्मान पत्रों से   पेट नहीं भरता।

 आदी काल से आज तक लेखक ग़रीबी में है। प्रेमचंद्र भूखे प्यासे मरे।  प्रकाशक माला माल।

 अब भी notion press में 

मेरी हिंदी तमिल सीखिए 550

प्रतियाँ बिक चुके हैं।

 एक प्रति 300रुपये।

 एक भी पैसे देने तैयार नहीं।

 हिंदी की सेवा,

 अर्थ के लिए नहीं 

 अर्थ हीन भारतीयों में 

 सार्थक राष्ट्रीयता जगाना

भारतीय भाषा प्रेमी जगाना।

 पर बुजुर्ग ही जमा होते हैं,

 युवती सही,

 युवक अति कम।

 आम धनी सुख 

 आमदनी रहित 

व्यर्थ।

 निर्धनी को पत्नी भी

नहीं चाहेगी।

मेरे हिंदी अध्यापक और मेरी संतानों की जीविकोपार्जन की भाषा 

 हिंदी नहीं,  अति संपन्न।

यह स्थिति बदलना संभव होनी चाहिए।

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