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Wednesday, November 5, 2025

परिवर्तन शीलता

 नमस्ते वणक्कम्।

जब मुख पुस्तिका 

 खुलता हूँ,तब प्रेरित करता है मन की बात लिखो।

 प्रधान मंत्री से मनकी बात,

 अगर मेरे अंतर्मन की बात कहने पर

 दोस्ती बढ़ेगी या घटेगी पता नहीं।

 तुलसी का चंद लिखो,

 खोरठा , चौपाई, दोहा लिखो।

 सूर सा लिखो

 तब तो वे दिव्य कवि

 सूर्य चंद्र  सब कैसे?

 कुछ लोग रूढ़ीवाद पर 

 जोर देते हैं।

 सोचता हूँ, 

 पाषाण युग के रूढ़ीवाद 

 पशुओं के वाहन 

 अब नहीं टिक सकता

आवागमन के साधनों मैं 

 विकास परिवर्तन,

 नौकरियों की सुविधाएँ,

 पेशेवर का यंत्रीकरण,

संगणिक क्षेत्र की क्रांति 

 गुरुकुल पाठशाला का लापता,

 संस्कृत मिलावट भारतीय बाषाएँ शिक्षितों का आदर आधार।

 अब अंग्रेज़ी मिलावट 

 अंग्रेज़ी माध्यम 

 कितना गर्व का विषय।

 अमूल भारतीय भाषाओं का, संस्कृति का, पोशाक और खाद्य तरीकों का

  टट्टी तक अंग्रेजी परिवर्तन।

 एक जमाना था खुले मैदान ही शौचालय।

 अब वह restroom

 आराम कक्ष में बदल गया।

 साहित्य की इतना विकास 

 तकनिकी ग्रंथों का विकास 

 ज्ञान का विस्फोट 

 ताड़ के ग्रंथों के कारण नहीं,

 छापाखाने के कारण।

परिवर्तन ही प्रगति।

नश्वर संसार में परिवर्तन प्रधान।

 संकलनत्रय न तो

 वह साहित्य आकर्षण खो देता।

  पद्यात्मक साहित्य का ही  रूढ़िवादी के अनुसार रहें तो हमे प्रेम चंद, 

 जयशंकर प्रसाद 

 छायावाद रूढ़ीवाद प्रगति वाद हालावादी विचारों कै

 नव कविता, मुक्त छंद है कू इतनी शैलियाँ

 कहानी, लघु कहानी निबंध आत्मकहानी आलेखन पत्र  इतने स्वाहित्य वर्गीकरण कैसे मिलते।

 प्रेम विवाह, अंतर्राष्ट्रीय विवाह, अंतर्जातीय विवाह, तलाक, वृद्धाश्रम 

 परिवर्तन ही विकास।

 खड़ी बोली हिन्दी का विकास।

भाषाओं की मृत्यु 

 नयी भाषा का विकास।

 यही नश्वर जगत का अनश्वर परिवर्तन।


 एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।

 

 

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