अपनी आँखों से उसे दूर जाते देखा है, शीर्ष क उसे माने क्या? सुंदर प्रेमी या प्रेमिका या मित्र मिलने -बिछुड़ जाने कितनी कविताएँ.
मैं जब छोटा था,
मुझे कितनों का प्यार मिला
बडा बना तो उसे दूर होते देखा.
कम कमाई, पर नाते रिश्ते के आना जाना
खुशी से मिलना दुलारना,
उन सब को देखा .
घर छोटा-दिल बड़ा.
अधिक कमाई बडा घर पर
नाते रिश्ते की
आना- जाना ,मिलना- जुलना
सब को
अब बंद होना देखा था.
गुरु जन मुफ्त सिखाते,
अब बोलने के लिए तैयार
पैसे गुरु शिष्य वात्सल्य मिलते देखा.
हर बात हर सेवा, नेताओं का त्याग
सब दूर
कर्तव्यपरायणता सब मिटते
दूर होते दे देख रहा हूँ,
क्या करूँ?
स्वच्छ जल की नदियाँ ,
जल भरे मंदिर के तालाब
उन सबके दूर होते देख रहा हूँ
. क्या करूँ?
अब मेरी जवानी मिट दूर होते देख रहा हूँ.
हम में हर कोई चाहता है सुखी जीवन. सुखांत जीवन. प्रयत्न हर कोई लगातार जारी रखता है, कोई कामयाबी के शिखर पर कोई असफलता की घाटी में कोई संतुष्ट तो कोई असंतुष्ट को ई धनी, कोई नामी, कोई दानी, कोई धर्मी, कोई रूपवान, कोई कुरूप. अंत में निष्कर्ष यही सब के नचावत राम गोसाई.
जिससे अस्पष्ट दीख पडता सब कुछ. देवालय के, शिक्षालयों के न्यायालयों के न जाने और सरकारी कार्यालयों में राजनैतिक नेताओं के सब के भ्रष्टाचार में कोहरा स्थाई बन गया है.
मन का घोडा, अति तेज. रोकना रुकाना अति दुर्लभ. कितने विचार कितनी कल्पना कितने हवा महल. कितनी माया कितना आकर्षण. कितना आनंद, कितनी पीडा. कितनी आशाएँ कितनी निराशाएँ. यह मन होता तो मनुष्य मन शांत ब्रह्मानंद.
राधा-कृष्ण के मिलन नगर में .
बिल कुल ठंड पड जाएँ तो अवसाद के सिवा कुछ नहीं. पंच भूत तत्व शरीरा. उष्ण प्रधान जान. अंडे के लिए गर्मी. शारीरिक संबंध में गर्मी. गर्मी नहीं तो तन ठंड मन ठंड चारों ओर रुदन. गर्मी तू बलि, भली.