Tuesday, December 26, 2017

गाँव का नाला ,बचपन की यादें

पुराणी यादें ,
खेलते निर्भय ,
किसी ने न कहा,
संक्रामक रोग फैलेगा.
किसीने न कहा ,
कीटाणुओं का शिकार बनोगे .
किसीने न कहा
जल प्रढूषण.
आजकल वही गाँव ,
वही नाला,
चालीस साल शहरी वातावरण
पर पैर भिगोने डर लगता है,
उस समय के घासों का सुगंध नहीं ,
नाले में मोरे का गंदा पानी,
नाले की चौडाई कम .
कीचड से भरा,
भारतीय सरकार
ग्राम राज्य को भी
पैसे के लालच में
शहरी वातावरण बना रखा है.
खेतों में अधिकांश
इमारतें ,कारखाने ,
लोभी अंग्रेज़ी माध्यम पाठशालाएं,
केवल स्वार्थ धनियों के लिए.
वे पढ़कर डाक्टर बनते ,
धनलाभ के लालच में ,
जितने शिक्षा दान दिया ,
उतने लूटने.
जितना चुनाव खर्च किया
उतना लूटने.
स्वर्गीय सुख के नालें में

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