Tuesday, December 5, 2017

कली युग

मैं न कवि,  न पारंगत.
पागल के प्रलाप सा -युग की बात बक रहा हूँ.
रामायण काल
महाभारत काल
जातक कथाएं सब को देखा
सरसरी नजर से
कलियुग  तो है प्रतयक्ष
मेरी बुद्धि  में न कोई अंतर नहीं देखता.
सब युगों  में
बलात्कार, ठग, अहंकार, अत्याचार,
गंभीर  विचार किया तो
कलियुग ही सब से अच्छा.
ज्यादा ये ज्यादा
कहने की स्वतंत्रता.
आश्रमों की भ्रष्टता,
शासकों  की भ्रष्टता,
भले ही दंड ये बचे,
बातों की जानकारी तो मिलती,
बातें होती खुल्लमखुल्ला,
निस्संकोच मिलते रहते हैं बे शरम

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