Saturday, December 30, 2017

स्वतंत्र लेखन

स्वतंत्र लेखन मेरी भाषा, मेरी शैली. 
कितना लिखूँ, सुखांतसुखाय पहले. 
परमार्थ केलिए कैसे मैं कहूँ, 

वह है अपने और परियों की 
अपनी बुद्धि, अपने लाभ, 
भ्रष्टाचार के विरुद्ध लिखूँ, 
उसके समर्थक करते विरोध. 
नास्तिक   का  विरोध करूँ, 
उसके भी समर्थक हैं 
दान धर्म का समर्थन करूँ, 
तब भी विरोध, 
आलसियों की वृद्धि 
राजनैतिक बातें व्यर्थ .
सत्यता बल केवल कहानियों में. 
मातृभाषा माध्यमियों का समर्थन तो
नौकरी की आशा नहीं. 
स्वतंत्र लेखन क्या लिखूँ, 
लिख रहा हूँ निश्चिंत. 
चाहे बनवास कहें, 
चाहे सत्य वचन कहें 
चिंता नहीं किसी की. 
स्वतंत्र चिंतन नहीं, 
समाज में रहता हूँ. 
सामाजिक चिंतन ही बढी.
(स्वरचित )

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