सोच-समझ देश के हित. सुविचार में लग जा.
कर्म में लग जा देश के हित , धर्म कर्म में लग जा.१.
आशा रख भगवान पर, निराशा छोड़ जग में .
शरणागत्वत्सल रक्षक मान , परमानंद है जग में.२.
आध्यात्मिक लोग जग में , करते हैं मानव भेद .
आत्मा की बात मान चल, न मान भिन्न विचार.३.
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ मिथ्या जग स्वार्थ लोग , नित्य करते अघ ठग .
सत्य पथ जान पहचान , वंदना करते अग जग .४.
मनमाना काम न कर. मानसिक पीडा जान.
मन मानी बात मान.मानसिक चैन जान. (स्वरचित)५.
सहज मन उपजे ग्ञान ,सफलता की जड जान.
सत्संग से मिलते ग्ञान. संकट की मुक्ति जान.६.--नौ पोस्टेड
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स्वरचितप्रतियोगिता ---४.
काम करना मन को हर्ष .चुप रहना अति कठिन
बुरे विचार के मन में ,बेकारी ही पतन.७. चित्रपट देख इश्क ,इश्क । बलातकार,चुम्बन .।
सोच विचार दूर रह, अश्लील बात न सुन. ।८.
जी ठीक नहीं, बुद्धि भी ,कर्म भी सही नहीं।
जीवन बिन सद्विचार ,कभी सुख पाता नहीं.९--12
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प्रतियोगिता -पाँच
कर्म ही ठीक नहीं तो ,फल भी वांछित नहीं,
धर्म पथ ठीक नहीं तो जीवन में चैन नहीं,१० .
तेरी उन्नति तुझमें , जैसे शारीरिक विकास।
मेहनत, नेक सत्य , तीनों में है संतोष।११
लौकिक इच्छा कम करो, वही शांति का पथ।
अलौकिक अाध्यात्मिकता में है,अनंत संतोष!!१२
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प्रतियोगिता -६ छह
जान लो सही पैमाने में ,जग व्यवहार को।
जन्म फल मिलना हो तो, दूर करो चाहों को।१३.
भ्रष्टाचारी, काला धनी , रिश्वत खोरी ,भोगते बाह्यानंद।
आंतरिक आनंद भजन में ,जिससे मिलता ब्रह्मानंद।१४
विनाश काले विपरीत बुद्धि, ग्ञानी ने कहा।
विकास काले अनुकूल बुद्धी, ईश्वर की देन।।१५
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प्रतियोगिता -सात
राजनीती -भ्रष्टाचार ,सर रहित शरीर मान.
राम ने मारा छिपकर ,कुंजरः धीमा मुरली .१६.
देश हित जन्मे सूरमा, नेता बनते अगजग में .
अघ जग फैलाने जन्मे , बद बनते अगजग में १७ अहिंसा से बुद्ध बने , जग वन्द्य महान .
मोहन दास पाए मान ,अहिंसा का विशिष्ट मान.१८.
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प्रतियोगिता --आठ.
जान का कोई न जिम्मा, न जग जिम्मा जान .
मान ही रहता हमेशा , सम्मान खोना पाप. १९
भगवान देत दान-धर्म , मनमाना धन-दौलत .
पालन कर मन से धर्म , मान बड़ों की बात. २०.
बातों की जानकारी, आजादी के विचार.
कलियुग ही सब से अच्छा, बोलते है प्रकट. २१ .
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प्रतियोगिता -नौ उचित शिकार की राह देख , तीर पर बैठ बगुला.
देख शिकारी का तीर चला, तीर पर गिरा बगुला. २२
विधि की विडम्बना लख, सुकर्म में लीन हो जा.
विधि का फल टलते नहीं , लीला सब अनंत की .२३
कर्म फल भोगत तन मन . बुरे कर्म मत कर.
शर्म ही बद कर्म का फल, सुकर्म ही नित कर.२४.
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प्रतियोगिता --10मन की अशांति ताक, खुद ईश्वरभक्त बनI
ईश्वर के ध्यान में लग ,सदाचार का मार्ग बन. २५.
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