Tuesday, December 26, 2017

स्वार्थ -निस्वार्थ

प्रेम ही जीवन है तो
प्रेम क्यों तंग दिली है?
पगडंडी क्यों ?
स्वार्थ क्यों ?
तीसरे को स्थान क्यों नहीं?
तब तो प्रेम होते हैं
स्वार्थ -निस्वार्थ .
अपने दल -अपने शासन -अपने लाभ
स्वार्थ प्रेम.
देश के लिए दल -देश के लिए शासन -देश के लाभ.
निस्वार्थ प्रेम .
स्वार्थ प्रेम में जलन-लोभ -क्रोध .माया आदि
शैतान का केंद्र.
अपने परिवार सुखी रहें ,
आरक्षण पीढी दर पीढी मिलता रहें
चाहें घर में डाक्टर ,इन्जनीयर आदि दल
कम अंक अधिक संख्या में हो.
जनेऊ पहने प्रतिभाशाली ,
भले ही भूखों मर जाएँ ,
आ रक्षण नीति सत्तर साल की आजादी के बाद भी
स्वार्थ राजनीती का ,पक्षपात नीति का
स्वार्थ लक्षण ,आरक्षण का.
सत्तर साल के बाद आरक्षण मिटाना
निस्वार्थ प्रेमार्थ शासन विधान.

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