Saturday, January 25, 2014

कुछ पाकर खोना है,

आत्मोत्सर्ग

By: Anandakrishnan Sethuraman on Jan 26, 2014 | No Views |
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आज प्रातः काल ध्यान मग्न बैठा था;


विचार आया; चुप रहूँ;




केवल मन ध्यान में लगे,;


भारतीय समय चुप रहने न दिया.


कुछ लिखने की प्रेरणा देता रहता है.




कहा जाता है -मनुष्य जनम दुर्लभ.


समाज में हमें कुछ करना है.


तभी युवकों का विचार आया;


एक युवक अपनी प्रेमिका के मुख से उसका रिश्ता "भाई" के शब्द से जोड़ दिया.


वह युवक असहनीय पीड़ा से रेल की पटरीपर कूद पड़ा.




दुर्लभ मनुष्य जन्म ,


ज्ञान चक्षु प्राप्त मनुष्य जन्म


"भाई" का पवित्र नाता सह न सका;


प्यार /मुहब्बत/इश्क /लव


ये शब्द युवक -युवतियों को


सनकी/पागलपन/बावला बना रहे है.


उनके ज्ञान चक्षु को अँधा बना रहे हैं.


उनको यह सोचने नहीं देता


"जिन्दगी कुछ भी नहीं ,


कुछ पाकर खोना है,


कुछ खोकर पाना है."


मनुष्य जीवन में अंत निश्चित है.


जन्म-मरण के बीच की जिन्दगी


हमें कुछ करने केलिए;


ज़रा सोचिये! संसार में कुछ रचनात्मक कार्य हो रहे है


तो जन्म से कोई धनी नहीं है.


धन ही प्रधान माननेवाले


बिन धन कुछ नहीं होगा सोचनेवाले


कुछ नहीं कर सकते;


धन तो केवल मनुष्य को निष्क्रिय विचारहीन बुद्धि हीन


बनाकर भ्रष्टाचार के ओर,बलात्कार की और,लाले धन की और,


स्वार्थ की ओर.अन्याय की ओर


जबरदस्त खींचकर ले जाएगा;


ज़रा गहराई से सोचिये--


कौपीन या बगैर कौपीन के साधकों ने कितना कर दिखाया ,


कितनी सम्पत्ति जोड़ी,


समाज की कितनी भलायियाँ की हैं


उनलोगों ने चमत्कार करके दिखाया है.


स्वामी विवेकानंद अमेरिका में कैसे घूमे


कैसे भटके


अब उनकी साधना विश्ववन्द्य है.


रमण की जिन्दगी केवल कौपीन से गुज़री;


तिर्वन्नामलै क्षेत्र छोड़ और कहीं नहीं गए.


उनकी सेवाएं अपूर्व;विदेशी भी उनके चरण में;


राष्ट्र पिता मोहनदास क्या धनी थे?


उनकी सेवा विश्ववंदनीय रहा;


उनकी जीवनी का चित्रपट बनाकर विदेशी मालामाल बन गया.


हमारा प्यार प्यार के संकुचित भाव से


भक्ति श्रद्धा सेवा के आदर्श व्यापक सिद्धांत की और


बदलना है.


हमें सोचना है,ईश्वर ने हमें जो कुछ शक्ति दी है,


वह मनुष्यता निभाने के लिए है.


देश हित के लिए हैं;


मानव समाज के लिए हैं;


विश्व कल्याण के लिए हैं


तभी हम "प्यार" के लिए आत्म हत्या न करेंगे.


सार्वभौमिक आत्मोत्सर्ग करेंगे;


इसी में जीवन की सार्थकता है.

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