Friday, January 10, 2014

संघ साहित्य में अन्तः -बाह्य धर्म

    साहित्य जो है ,मनुष्य जीवन और समाज से सम्बंधित है. वह मनुष्य के आतंरिक विचार धारा और जीवन और समाजगत मर्यादित जीवन और बहिरंग बातों को ध्यान से अध्ययन करके अपने विचार और चिंतन मंथन के द्वारा ज्यों के त्यों यथार्थ और आदर्श रूप में प्रकट करता है. इसीको साहित्य समाज का दर्पण ,साहित्य समाज की प्रति लिपि,साहित्य समाज का प्रतिपिम्ब ,साहित्य का आधार मनुष्य जीवन,मनुष्य जीवन को अनुशासित  रखने का धर्म आदि  के शीर्षकों से संक्षिप्त विशेषता  के रूप में प्रकट करते हैं.

   तमिल संघ साहित्य मनुष्य जीवन  में   धर्म  को  ही   प्रधान  मानता है.ये धर्म  व्यापक अर्थ  अभिव्यक्त करते हैं.धर्म  का तमिल शब्द अरम  है.  इस धर्म का फल अज्ञानान्धकार दूर  करना. इस  अज्ञानता ही  सभी अमंग्लता का जड़  हो जाता है. सब से श्रेष्ठ धर्म  मन को पवित्र रखना. तमिल शब्द अरम  अरु से निकला है .मतलब है काटना . अरम का मतलब है कटी बात.  आराम का मतलब तमिल में पंद्रह  अर्थ प्रकट करते हैं जो धर्म  का पर्यायवाची शब्द है. वे हैं १,सुकर्म २.भिक्षा ३.गरीबों को मुफ्त में बाँटना ४.रोगियों को मुफ्त चिकित्सा  ,दवा  देना ५.कल्याण करना,६,सुख ७.योग्यता ८.व्रत ९.पतिव्रत/पत्नीव्रत १० पुण्य  ११ मत ,सम्प्रदाय १२.ज्ञान १३ धर्मशाला १४.धर्म देवता १५.तटस्थ धर्म रक्षक. अरु तमिल का मूल  का मतलब है मिटाकर चल,मार्ग बनाओ,खंडित करो अलग करो  अरम अर्थात धर्म का मतलब सभी दुष्कर्म ,दुर्मार्ग मिटाकर अनुशान का मार्ग दिखाओ.आराम  न्याय के अर्थ में भी प्रयोग होता है.कर्तव्य निभाना भी आराम .धर्म है.
அறநெறி  முதற்றே அரசின்  கொற்றம்.  அறநனி  சிறக்க  ,
பிறர் நோயும் தன்நோய்  போல்  போற்றி  அறனறிதல்
சான்றவர்க்கெல்லாங் கடனானால் .
सुकर्म के फल  से प्राप्त पुण्य भी अरम अर्थात धर्म के अंतर्गत
अरन्तलैपपिरियातोलुकल
अरनुमन्रे आक्कामुम।    ऐसे व्यापक अर्थ अरम धर्म के लिए तमिल संघ साहित्य की बड़ी विशिष्टता है.
तमिल कवयित्री अव्वैयार "ईतल अरम" देना भी धर्म कहती है.
 संघ साहित्य में धर्म  के अर्थ असीमित है.
धर्म का अर्थ अकेला आदमी दूसरों के संपर्क में आने  के लिए अनुशासित आम धर्म बोलता है.
अव्वैयार की आज्ञा है --सुकर्म चाह;
वल्लुवर सत्य ,मानसिक सत्य ,शारीरिक सत्य तीनो पर जोर देते हैं.
उल्लत्तार पोय्या तोलुकिन उलकत्तार  उल्लत्तुल  एल्लाम उलन.
मानसीक निर्मलता पर जोर देते है.
सोच,वचन,कर्म तीनों धर्म के  लिए  आवश्यक है. मनसा,वाचा,कर्मणा  धर्म की सुरक्षा से ही जीवन सार्थक होगा.
वल्लुवर  धर्म की विशेषता को यों बताते हैं--
धर्म से जो मिलता है वही सुख;अधर्म के सुख को हटाना ही धर्म है.
 "अरत्तान वरुवते इन्बम मटर एल्लाम  पुरत्त पुकालुम इल.
वल्लुवर सभी सुकर कर्तव्य   बताते हैं.
कटनेंन्ब नल्लवै एल्लाम  कडनरिन्तु ,
  सान्रान्मै मेर्कोल्पवर्क्कू।
तमिल संघ साहित्य में धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष में धर्म को ही श्रेष्ठ स्थान दिया गया है.
व्याकरणिक ग्रन्थ तोल्काप्पियम  में  धर,अर्थ,काम तीनों की स्थितियों का जिक्र करता है.
"अन्निलै  मरुन्गिन अर मुतलाकिय  ,मुम्मुतर पोरुट कुम उरियवेंन्ब।
अरनुम पोरुलुम इन्बमुम  मूंरुम आट्रूम  पेरुम नीं सेलवम.
    जो भी कमाते हैं ,धर्म मार्ग पर ही  कमाना हैं वही सुखप्रद होगा.
वल्लुवर --अरनीनुम इन्बमुम ईनुम  थिरनरिन्तु  तीतिनरी  वन्त  पोरुल।

 संघ साहित्य एक महा सागर है.धर्म के बारे में चंद बूंदे हैं ये.
अंत में अव्वैयार  की एक छंद
और नाच्चिनार्क्किनियर के वाक्य दोनों में धर्म अर्थ काम मोक्ष आदि पर  उल्लेख करना इस सन्दर्भ में
अनिवार्य आवश्यक है,जिनसे स्पष्ट होगा  तमिल संघ साहिय की खूबियाँ.
 अव्वैयार :-
ईतल  अरम तीविनै विट्टू  ईट टल  एग्न्यान्रुम
कातालिरुवर करुत्तोरुमित --तातरवू
पट ट ते यिन्बम परनै निनैन्तु  इम्मून्रुम
वित् टते  पेरिन्ब वीडु।

बुराई छोड़ कमाने में ही सुख ,संतोष और आनंद है.धर्म,अर्थ.काम तीनों को तजना मोक्ष है.

नच्चिनार्क्किनियर -- अकत्तिनैक  कण  इन्बमुम पुरत्तिनैक कण  ओलिंत मून्रु पोरुलुम उनर्त्तुब "

   तमिल संघ साहित्य "अरम" धर्म पर  अनुशासित जीवन पर जोर देता है,
 थोड़े में कहें तो धर्म  सहज प्रेरणार्थक  स्थिति.,रूढ़ीअनुशासित स्थिति ,मानसिक साक्षी की स्थिति आदि पर
ध्यान देकर धर्म पथ पर चलना  तमिल संघ साहित्य की धार्मिक व्याख्या है.
धर्म सुखप्रद, धार्मिक मार्ग सुख प्रद, धार्मिक जीवन बिताना सुखप्रद, धार्मिक कमाई सुखप्रद,धार्मिक अनुशासन अनुसरण आनंद और संतोष प्रद ,धर्म,अर्थ,काम  पुरुषार्थ  आदि पर तमिल संघ साहित्य मार्गदर्शक हैं.


No comments:

Post a Comment